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गोवर्धन पूजा का महत्व और कथा: जानें कैसे हुई इसकी शुरुआत

गोवर्धन पूजा का त्योहार कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, जिसमें 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस पूजा से भक्तों को सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। जानें इस पूजा की पौराणिक कथा और इसके महत्व के बारे में।
 

गोवर्धन पर्वत की पूजा का महत्व


गोवर्धन पूजा का पर्व


वैदिक पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा का त्योहार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मथुरा और अन्य स्थानों पर धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, जिसमें 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन की पूजा से भक्तों को सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। आइए, इस लेख में गोवर्धन पर्वत की कथा को जानते हैं।


गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पर्वत का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार इंद्रदेव को गर्व हो गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के अभिमान को तोड़ने के लिए एक लीला की। एक दिन सभी ब्रजवासी पूजा की तैयारी कर रहे थे और विभिन्न प्रकार के पकवान बना रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि वे किसकी पूजा कर रहे हैं।


माता ने बताया कि वे इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं। भगवान ने पूछा कि इंद्रदेव की पूजा का कारण क्या है। माता ने बताया कि इंद्रदेव की वर्षा से फसलें उगती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि वर्षा करना इंद्र का कर्तव्य है, लेकिन यदि पूजा करनी है, तो गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि वहां हमारी गायें चरती हैं।


इसके बाद सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलधार बारिश शुरू कर दी। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी को सुरक्षित रखा। इस घटना के बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा शुरू हुई।