गोवर्धन पूजा: गोबर के दीप और पर्वत का विसर्जन कैसे करें
गोवर्धन पूजा का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी
गोवर्धन पूजा, जो दीवाली के पांच दिवसीय उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की उस अद्भुत लीला की याद में मनाया जाता है जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाए जाने वाले इस पर्व पर श्रद्धालु गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का निर्माण करते हैं और उसकी पूजा करते हैं।
गोवर्धन पूजा 2025 की तिथि
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। यह पर्व देशभर में मनाया जाता है, लेकिन ब्रज क्षेत्र में इसका उत्सव विशेष भव्यता से होता है।
गोबर का विसर्जन
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गोवर्धन पूजा में उपयोग किया गया गोबर एक पवित्र तत्व माना जाता है। इसे कूड़े या अपवित्र स्थान पर फेंकना अशुभ माना जाता है। ऐसा करने से धन और सुख-समृद्धि में कमी आ सकती है। पूजा समाप्त होने के बाद गोवर्धन पर्वत को पूरे दिन उसी स्थान पर रहने दें। शाम को इसे सावधानी से एकत्र करें और उसमें करवा चौथ की पूजा में इस्तेमाल हुई सफेद सींकें लगाएं। इसके बाद गोबर के पर्वत पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं और इसे अपने आंगन में सुरक्षित स्थान पर रखें।
गोवर्धन पूजा के बाद गोबर से शुभ कार्य
- आंगन या छत की लिपाई करें: गोवर्धन पूजा के गोबर से आंगन या छत की लिपाई करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी का वास घर में बना रहता है और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
- उपले बनाएं: पूजा के बाद बचे हुए गोबर से कंडे (उपले) बनाए जा सकते हैं। इन्हें सर्दियों में खाना पकाने या धूप के रूप में जलाने से वातावरण शुद्ध होता है।
खेतों में गोबर का उपयोग
- गोबर को खेतों में डालना शुभ और उपयोगी होता है। यह प्राकृतिक खाद मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ाती है और फसल की पैदावार में वृद्धि करती है।
- गोबर को सूखाकर या सीधे ही गमलों में खाद के रूप में डाल सकते हैं। इससे पौधे हरी-भरी और स्वस्थ रहते हैं। चाहें तो इसे स्थानीय गोशाला में दान भी किया जा सकता है, जो पुण्य का कार्य माना गया है।