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चतुर्दशी श्राद्ध: अकाल मृत्यु के पितरों के लिए विशेष पूजा

चतुर्दशी श्राद्ध का दिन विशेष रूप से उन पितरों के लिए होता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई है। इस दिन की पूजा से प्रेतबाधा का निवारण होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जानें इस दिन की पूजा विधि, शुभ योग और शनिदेव की विशेष पूजा के बारे में।
 

चतुर्दशी तिथि का महत्व


चतुर्दशी तिथि पर प्रेतबाधा का निवारण
पितृपक्ष के दौरान, पितरों की पूजा और मुक्ति के लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में, इस पखवाड़े में पितर पृथ्वी पर आते हैं और उनके लिए की जाने वाली पूजा, तर्पण और श्राद्ध से वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। आज शनिवार को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा।


अकाल मृत्यु के पितरों के लिए श्राद्ध

यह श्राद्ध उन आत्माओं के लिए किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई है। गरुड़ पुराण और अन्य धर्मशास्त्रों के अनुसार, असमय मृत्यु का सामना करने वाले पितर अक्सर प्रेत योनि में भटकते हैं। चतुर्दशी तिथि पर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से उनकी प्रेतबाधा समाप्त होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


चतुर्दशी श्राद्ध का शुभ योग

पंचांग के अनुसार, आज चतुर्दशी तिथि पर अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:50 से 12:39 बजे तक रहेगा। राहुकाल सुबह 9:11 से 10:43 बजे तक रहेगा। इस दिन सूर्य और बुध कन्या राशि में तथा चंद्रमा सिंह राशि में होंगे, जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है।


शनिदेव की पूजा का महत्व

शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है। अग्नि पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति मिलती है। सात शनिवार व्रत रखने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।


शनिदेव की पूजा विधि

शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और पूजा स्थल को साफ करें। शनिदेव की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं और उन्हें काले वस्त्र, काले तिल, काली उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें। इसके बाद सरसों के तेल का दीपक जलाएं।


छाया दान का महत्व

पीपल के पेड़ के नीचे हर शनिवार सरसों के तेल का दीपक जलाना और छाया दान करना शुभ माना जाता है। यह नकारात्मकता को दूर करने में मदद करता है।