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जितिया व्रत की कथा: बच्चों की लंबी उम्र का रहस्य

जितिया व्रत की कथा माताओं के लिए बच्चों की दीर्घायु का एक महत्वपूर्ण रहस्य है। यह कथा न केवल श्रद्धा को बढ़ावा देती है, बल्कि आयुर्वेद और आस्था का अनूठा मेल भी प्रस्तुत करती है। जानें कैसे जीमूतवाहन की दयालुता और गरुड़ के वरदान ने बच्चों की लंबी उम्र सुनिश्चित की। इस पवित्र व्रत का महत्व और इसकी कहानी को सरल शब्दों में समझें।
 

जितिया व्रत की कथा का महत्व

जितिया व्रत की कथा: बच्चों की लंबी उम्र का रहस्य! नई दिल्ली: जितिया व्रत की कथा माताओं के लिए बच्चों की दीर्घायु और समृद्धि का एक महत्वपूर्ण पहलू है।


यह कथा न केवल श्रद्धा को बढ़ावा देती है, बल्कि आयुर्वेद और आस्था का अनूठा मेल भी प्रस्तुत करती है। आइए, इस पवित्र जितिया व्रत की कथा को सरल शब्दों में समझते हैं, जिसे सूतजी ने नैमिषारण्य के ऋषियों को सुनाया था।


जितिया व्रत की शुरुआत

सूतजी ने बताया कि जब द्वापर युग का अंत हुआ और कलियुग की शुरुआत हुई, तब कई दुखी महिलाएं गौतमजी के पास गईं। उन्होंने पूछा, "इस कलियुग में बच्चों को लंबी उम्र कैसे मिले?" गौतमजी ने उन्हें एक प्राचीन कथा सुनाई।


महाभारत युद्ध के बाद, जब द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों को मार दिया, तब दुखी द्रौपदी ने ब्राह्मण धौम्य से पूछा, "बच्चों की लंबी उम्र के लिए क्या करें?" धौम्य ने जितिया व्रत की कथा सुनाई।


जीमूतवाहन की दयालुता

धौम्य ने बताया कि सत्ययुग में जीमूतवाहन नामक एक दयालु राजा थे। एक बार, जब वह अपनी ससुराल में थे, उन्होंने एक बूढ़ी मां को अपने मृत बेटे के लिए रोते देखा। मां ने बताया कि गरुड़ रोज बच्चों को खा जाता है। यह सुनकर जीमूतवाहन ने उस मां का दुख दूर करने का निर्णय लिया।


वे उस स्थान पर पहुंचे जहां गरुड़ मांस खाता था। जब गरुड़ ने राजा का बायां अंग खाया, तो राजा ने निस्वार्थ भाव से अपना दायां अंग भी दे दिया। गरुड़ ने उनकी दयालुता देखकर पूछा, "आप कौन हैं?" राजा ने कहा, "मैं सूर्यवंश का जीमूतवाहन हूं।" उनकी निस्वार्थता से प्रभावित होकर गरुड़ ने वरदान दिया कि जिन बच्चों को उन्होंने खाया, वे जीवित हो जाएंगे और भविष्य में कोई बच्चा नहीं मरेगा।


जितिया व्रत का महत्व

गरुड़ ने अमृत लाकर मृत बच्चों की हड्डियों पर बरसाया, जिससे वे जीवित हो गए। गरुड़ ने कहा, "आज आश्विन कृष्ण सप्तमी रहित अष्टमी है। इस दिन से जीवित्पुत्रिका व्रत शुरू होगा।


जो महिलाएं शुद्ध अष्टमी को यह व्रत करेंगी और कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाकर पूजा करेंगी, उनके बच्चों की उम्र लंबी होगी।" व्रत का पारण नवमी को करना चाहिए, वरना फल नष्ट हो सकता है। द्रौपदी ने यह व्रत किया और उनके बच्चों को लंबी उम्र मिली।


चील और सियारिन की कहानी

गौतमजी ने आगे बताया कि एक चील और सियारिन ने यह कथा सुनी और व्रत किया। चील ने सभी नियमों का पालन किया, लेकिन सियारिन ने आधी कथा सुनकर मांस खा लिया। अगले जन्म में दोनों अयोध्या के एक व्यापारी के घर बहनें बनीं।


सियारिन (बड़ी बहन) काशिराज की पत्नी बनी, और चील (छोटी बहन) मंत्री की पत्नी। सियारिन के बच्चे मर जाते थे, जबकि चील के आठ बेटे जीवित रहे। ईर्ष्या में राजरानी ने मंत्री के बेटों को मारने की कोशिश की, लेकिन व्रत के पुण्य से वे बच गए। अंत में, चील ने राजरानी को जितिया व्रत के नियमों का पालन करने की सलाह दी। राजरानी ने व्रत किया और उसके बच्चे भी दीर्घायु हुए। सूतजी कहते हैं, यह व्रत करने से बच्चों को लंबी उम्र और सुख मिलता है।