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जितिया व्रत: महत्व और पौराणिक कथा की जानकारी

जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए मनाया जाता है। यह व्रत हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आयोजित किया जाता है। इस लेख में, हम जानेंगे जितिया व्रत का महत्व, इसकी पौराणिक कथा और इसे मनाने की विधि। जानें कैसे यह व्रत माताओं के लिए विशेष है और इसके पीछे की कहानियाँ क्या हैं।
 

14 सितंबर को मनाया जाएगा जितिया व्रत


जितिया व्रत, नई दिल्ली: जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत का आयोजन संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने पुत्रों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए रखा जाता है। महापर्व छठ के बाद, जितिया व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस दिन महिलाएं 24 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं। यह व्रत हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।


इस वर्ष, यह व्रत 14 सितंबर को होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जितिया व्रत करने से संतान दीर्घायु होती है और उन पर आने वाले संकट टल जाते हैं। इसे कई स्थानों पर जीवित्पुत्रिका और जीउतिया के नाम से भी जाना जाता है। जितिया व्रत का आरंभ नहाय-खाय से होता है। आइए जानते हैं कि जितिया व्रत की शुरुआत कैसे हुई और इसकी पौराणिक कथा क्या है।


जितिया व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, जिससे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मृत्यु हो गई। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की संतान को पुनर्जीवित किया, और उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तभी से माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया व्रत करने लगीं।


चील और सियारिन की कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थीं। दोनों की आपस में अच्छी दोस्ती थी और वे एक-दूसरे के लिए खाना बचाकर रखती थीं। एक दिन गांव की महिलाएं जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं, जिसे देखकर चील ने भी व्रत करने का मन बनाया। चील ने सियारिन को इस बारे में बताया।


दोनों ने तय किया कि वे भी जितिया का व्रत रखेंगी। लेकिन जब सियारिन को भूख और प्यास लगी, तो उसने व्रत तोड़ दिया। चील ने पूरी निष्ठा से व्रत का पालन किया।


भगवान जीऊतवाहन की कथा

चील और सियारिन ने अगले जन्म में बहन बनकर एक राजा के घर जन्म लिया। चील ने सात बेटों को जन्म दिया, जबकि सियारिन के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। सियारिन ने अपनी बहन की खुशियों को देखकर जलन महसूस की और चील के बेटों को मार दिया। भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से उन बेटों के सिर बनाए और उन्हें जीवित कर दिया।


सियारिन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी बहन से माफी मांगी।


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