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दिल्ली में बियर की कमी: गर्मी में शराब प्रेमियों की बढ़ी मुश्किलें

दिल्ली में गर्मियों के दौरान बियर की कमी ने शराब प्रेमियों को नई परेशानियों में डाल दिया है। कई लोकप्रिय ब्रांड्स का स्टॉक खत्म हो गया है, जिससे लोग मजबूरी में अनजाने ब्रांड्स का सहारा ले रहे हैं। सरकारी दुकानों पर बियर की उपलब्धता पर नियंत्रण होने के कारण स्थिति और भी गंभीर हो गई है। भूटान और नेपाल से आयातित बियर की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उनकी लोकप्रियता कम है। जानें इस समस्या के पीछे के कारण और संभावित समाधान।
 

दिल्ली में बियर की कमी का सामना

दिल्ली की गर्मी और उमस के बीच, लोगों को एक नई समस्या का सामना करना पड़ रहा है - उनकी पसंदीदा बियर का अभाव। राजधानी में कई लोकप्रिय बियर ब्रांड्स का स्टॉक खत्म हो गया है, जिससे किंगफिशर, बडवाइजर, ट्यूबॉर्ग, हेवर्डस, कार्ल्सबर्ग और हंटर जैसी बियरें ठेकों पर उपलब्ध नहीं हैं। इस स्थिति के कारण शराब प्रेमियों को ऐसे ब्रांड्स का सहारा लेना पड़ रहा है, जिनके बारे में उन्होंने पहले कभी नहीं सुना।


सरकारी दुकानों पर बियर की कमी

एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी शराब दुकानों पर लोकप्रिय बियर ब्रांड्स की अनुपस्थिति देखी जा रही है। गर्मियों में बियर की मांग में वृद्धि होती है, लेकिन इस बार सप्लाई में बाधा आने से ग्राहक निराश हैं। कई लोग अपनी पसंदीदा बियर की तलाश में नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों की ओर बढ़ रहे हैं।


सरकारी नियंत्रण का असर

दिल्ली में शराब केवल सरकारी दुकानों के माध्यम से बेची जाती है। दुकानदारों का कहना है कि वे यह तय नहीं कर सकते कि उनके पास कौन सा ब्रांड होगा, क्योंकि यह पूरी तरह से सरकारी कंपनियों के नियंत्रण में है। जब स्टॉक ही नहीं होगा, तो ग्राहकों को क्या दिया जाएगा?


भूटान और नेपाल की बियर का बढ़ता चलन

दिल्ली के शराब बाजार में भूटान और नेपाल से आयातित बियर की संख्या बढ़ रही है। इन बियरों पर आयात शुल्क बहुत कम है, जिससे इनका मुनाफा अधिक होता है। हालांकि, इन ब्रांड्स की लोकप्रियता कम है और ग्राहक इन्हें खरीदने में हिचकिचाते हैं। मजबूरी में कुछ लोग इन्हें चुन रहे हैं, लेकिन अनुभव संतोषजनक नहीं है।


विदेशी बियर की अनुपस्थिति

महंगी और उच्च गुणवत्ता वाली आयातित बियर भी दुकानों पर उपलब्ध नहीं हैं। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि सरकारी सप्लाई चेन में अभी भी व्यवधान बना हुआ है। प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के हटने के बाद, ब्रांड चयन और आपूर्ति पूरी तरह से सरकारी एजेंसियों के अधीन हो गई है।