देवशयनी एकादशी: व्रत का महत्व और पूजा विधि
देवशयनी एकादशी का व्रत
आषाढ़ मास की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी का व्रत मनाया जाता है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत के माध्यम से भक्तों को बैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह व्रत व्यक्ति के सुख और सौभाग्य में वृद्धि करता है। देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इन चार महीनों में भगवान शिव के अंश रुद्र धरती का संचालन करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि देवशयनी एकादशी का व्रत कब होगा, इसका महत्व और पूजा विधि क्या है।
देवशयनी एकादशी व्रत कब मनाया जाएगा
जानकारी के अनुसार, देवशयनी एकादशी तिथि 05 जुलाई की शाम 06:59 मिनट पर शुरू होगी और 06 जुलाई की रात 09:16 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, 06 जुलाई को इस व्रत का आयोजन किया जाएगा। इसी दिन से चतुर्मास की शुरुआत भी होगी। इसके बाद, 07 जुलाई 2025 को एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा।
देवशयनी एकादशी का महत्व
पुराणों में देवशयनी एकादशी का महत्व अत्यधिक बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम के लिए जाते हैं और लगभग चार महीने तक विश्राम करते हैं, जिसे चतुर्मास कहा जाता है। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी या मुंडन नहीं किए जाते हैं। इन चार महीनों में भगवान शिव धरती का संचालन करते हैं।
पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पीले रंग के कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद, श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें और भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते का भोग अर्पित करें।
इसके बाद, देवशयनी एकादशी की कथा का पाठ करें और अंत में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती करें। एकादशी के दिन व्रत करने वाले या न करने वाले सभी लोगों को चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन फलाहार करना उचित है।