धामी का पत्थर मेला: परंपरा और उत्साह का अनोखा संगम
पत्थर मेले की अनोखी परंपरा
शिमला: राजधानी शिमला के हलोग धामी में मंगलवार को दिवाली के दूसरे दिन सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार पत्थर मेला धूमधाम से मनाया गया। इस विशेष आयोजन में स्थानीय लोग दो समूहों में बंटकर एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। यह खेल तब तक जारी रहता है जब तक किसी एक पक्ष के सदस्य को चोट नहीं लग जाती। इस वर्ष भी लगभग 40 मिनट तक दोनों पक्षों के बीच जोरदार पत्थरबाजी हुई। कटेड़ू टोली के सुभाष को पत्थर लगने से खून बहा, जिसके बाद उनके रक्त से मां भद्रकाली का तिलक किया गया और खेल का समापन हुआ।
मेला का आयोजन और विजेता टोली
धामी में यह मेला राजपरिवार की ओर से तुनड़ू, जठौती और कटेड़ू परिवार की टोली और जमोगी खानदान की टोली के बीच आयोजित किया जाता है। स्थानीय लोग इस मेले का आनंद लेने आते हैं, लेकिन वे खुद पत्थर नहीं फेंक सकते। इस बार भी सभी रस्मों और मान्यताओं के अनुसार पत्थर मेला संपन्न हुआ, जिसमें जमोगी टोली ने जीत हासिल की।
सुभाष का अनुभव और मेला कमेटी की जानकारी
पत्थर मेला में चोट लगने के बाद सुभाष ने कहा, “मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि इस आयोजन के दौरान मेरा खून निकला। यह हमारी आस्था और परंपरा का प्रतीक है। हम अपने खून निकलने की परवाह नहीं करते, क्योंकि हमारी मान्यता है कि यह खेल चलता है और भगवान हमारी सुरक्षा करते हैं।”
मेला कमेटी के महासचिव रणजीत सिंह कंवर ने बताया कि यह मेला हर साल दिवाली के अगले दिन होता है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। राजपरिवार के जगदीप सिंह ने भी इस आयोजन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डाला।
पत्थर मेले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इस मेले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी दिलचस्प है। पहले यहां हर वर्ष मां भद्रकाली को नरबलि दी जाती थी, लेकिन धामी रियासत की रानी ने अपने सती होने से पहले नरबलि बंद करने का आदेश दिया। इसके बाद पशुबलि की परंपरा शुरू हुई, जो कई दशक पहले समाप्त हो गई। तत्पश्चात पत्थर मेला शुरू हुआ और तब से यह अनोखी परंपरा हर साल दिवाली के दूसरे दिन धामी में आयोजित होती है।
धामी का सांस्कृतिक महत्व
पत्थर मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय लोगों के उत्साह, साहस और सामूहिक भागीदारी का प्रतीक भी बन चुका है। इस मेले में चोट लगना और खून निकलना इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि रक्त से तिलक करने की रस्म मां भद्रकाली की कृपा और सुरक्षा का प्रतीक है।
धामी शिमला शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है और यह क्षेत्र ग्रामीण और पारंपरिक मान्यताओं का केंद्र माना जाता है।