नरक चतुर्दशी: महत्व और पूजा विधि
नरक चतुर्दशी का महत्व
कार्तिक कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले पांच पर्वों की श्रृंखला में पहला पर्व धनतेरस है, जिसके बाद नरक चतुर्दशी आता है। इस पर्व का नाम 'नरक' से जुड़ा हुआ है, जो मृत्यु और यमराज से संबंधित है। मान्यता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से नरक की यातना से मुक्ति मिलती है। दीवाली से एक दिन पहले मनाए जाने वाले इस पर्व की तिथि को लेकर लोगों में भ्रम है कि यह 19 या 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर, रविवार को दोपहर 1:51 बजे शुरू होगी और 20 अक्टूबर, सोमवार को 3:44 बजे समाप्त होगी। हालांकि, उदया तिथि के अनुसार छोटी दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जानी चाहिए, लेकिन यम चतुर्दशी की पूजा शाम के समय होती है, इसलिए इसे 19 अक्टूबर को मनाने का निर्णय लिया गया है। 20 अक्टूबर को सुबह 5:13 से 6:25 बजे तक का समय अभ्यंग स्नान के लिए शुभ है।
नरक चतुर्दशी के अन्य नाम
नरक चतुर्दशी को 'नरक चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'काल चतुर्दशी' और 'छोटी दीवाली' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन यमराज और धर्मराज चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। यह दिन रामभक्त हनुमान का जन्मदिन भी है और भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी।
पूजा विधि और मान्यताएँ
यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है। नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले स्नान करना शुभ माना जाता है और शाम को दीपदान किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जिससे पृथ्वीवासियों को उसके अत्याचारों से मुक्ति मिली।
दीप जलाने की परंपरा
धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दीवाली के दिन दीप जलाने की परंपरा है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने बलि के शरीर को तीन पगों में नाप लिया था, जिसके कारण लोग इन दिनों दीप जलाते हैं। इस दिन घरों की सफाई भी की जाती है और सूर्योदय से पहले स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।