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नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा विधि और महत्व

इस वर्ष नवरात्रि का पर्व 10 दिनों तक मनाया जा रहा है, और आज इसका पांचवां दिन है। इस दिन माता स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। माता की विधिवत पूजा करने से निसंतान दंपतियों को संतान सुख प्राप्त होता है। जानें माता स्कंदमाता के स्वरूप, पूजा विधि, भोग, मंत्र, कथा और आरती के बारे में, ताकि आप भी माता की कृपा प्राप्त कर सकें।
 

नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा

नवरात्रि का पांचवां दिन: स्कंदमाता पूजा: इस वर्ष नवरात्रि का पर्व 10 दिनों तक मनाया जा रहा है, और आज 27 सितंबर 2025 को इसका पांचवां दिन है। इस दिन माता स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि माता की सही विधि से पूजा करने से निसंतान दंपतियों को संतान सुख प्राप्त होता है। आइए जानते हैं माता स्कंदमाता के स्वरूप, पूजा विधि, भोग, मंत्र, कथा और आरती के बारे में, ताकि आप भी माता की कृपा प्राप्त कर सकें।


माता स्कंदमाता का स्वरूप

माता स्कंदमाता अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) के साथ विराजमान हैं। उन्हें कमल के आसन पर बैठा हुआ दर्शाया जाता है, इसलिए उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। उनका वाहन सिंह है। मान्यता है कि माता के इस स्वरूप की पूजा करने से संतान से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।


स्कंदमाता की पूजा विधि

माता स्कंदमाता की पूजा करना सरल है। सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। घर के पूजा स्थल या मंदिर में माता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।


माता को गंगाजल से स्नान कराएं और षोडशोपचार पूजन करें। उन्हें कमल का फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। ‘ॐ देवी स्कंदमातायै नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। पूजा के बाद माता की आरती करें और दुर्गा सप्तशती या देवी कवच का पाठ करें।


माता को भोग

माता स्कंदमाता को केले का भोग बहुत प्रिय है। इसके साथ ही केसरयुक्त खीर भी चढ़ाई जा सकती है। माता को पीले रंग की वस्तुएं पसंद हैं, इसलिए पूजा में पीले फल, वस्त्र या अन्य सामग्री का उपयोग करें।


स्कंदमाता के मंत्र

मुख्य मंत्र: ॐ देवी स्कंदमातायै नमः।


स्तुति मंत्र: सिंहासना-गता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
प्रार्थना मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


स्कंदमाता की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस तारकासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने कहा कि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है। तारकासुर ने कहा कि उसकी मृत्यु केवल शिवजी के पुत्र के हाथों होगी। उसे विश्वास था कि शिवजी का विवाह नहीं होगा, तो उसकी मृत्यु भी नहीं होगी।


ब्रह्माजी ने तथास्तु कहकर वरदान दे दिया। इसके बाद तारकासुर ने अपने अत्याचारों से पृथ्वी और स्वर्ग को परेशान कर दिया। सभी देवता शिवजी के पास गए और तारकासुर से मुक्ति की प्रार्थना की। तब शिवजी ने माता पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बने। अंततः कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। माता स्कंदमाता कार्तिकेय की माता हैं।


स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहू मैं। हरदम तुझे ध्याता रहू मैं॥
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥


इंद्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खंडा हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥