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नवरात्रि: शक्ति और आध्यात्म का पर्व

नवरात्रि, जो भारत में धूमधाम से मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है, शक्ति और आध्यात्म का प्रतीक है। इस पर्व के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का आयोजन साल में दो बार होता है, जिसमें शारदीय नवरात्रि को विशेष महत्व दिया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समय स्वास्थ्य और मानसिक शक्ति को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। जानें इस पर्व के पीछे का गहरा अर्थ और पूजा विधि के बारे में।
 

नवरात्रि का महत्व

भारत में नवरात्रि का पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें शारदीय नवरात्रि सबसे प्रमुख है। यह पर्व पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। शायद बहुत से लोग नहीं जानते कि साल में चार बार नवरात्रि आती है, और हर एक का अपना विशेष महत्व है। देवी पुराण के अनुसार, साल में मुख्य रूप से नवरात्रि का त्योहार दो बार मनाया जाता है।


नवरात्र का अर्थ

नवरात्रि शब्द 'नव' और 'रात्रि' से मिलकर बना है। 'नव' का अर्थ है नौ, जबकि 'रात्रि' में 'रा' का अर्थ रात और 'त्रि' का अर्थ जीवन के तीन पहलू - शरीर, मन और आत्मा है। इंसान को भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और रात का समय हमें इनसे मुक्ति दिलाने में मदद करता है।


नवरात्रि का आयोजन

साल में दो बार नवरात्रि का आयोजन होता है। पहली बार चैत्र मास में और दूसरी बार आश्विन मास में। दोनों नवरात्रियों में शारदीय नवरात्रि को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दौरान यज्ञ और हवन का आयोजन होता है, जो दुख और दर्द को दूर करने में सहायक होते हैं।


नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

नवरात्रि हमें सिखाती है कि कैसे हम अपनी अच्छाइयों से नकारात्मकता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यह नौ दिन हमें अपने मूल रूप की पहचान कराने में मदद करते हैं। इन दिनों का उपयोग ध्यान, सत्संग और ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाना चाहिए।


नवरात्रि का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास के अनुसार, नवरात्रि हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व भी है, क्योंकि यह समय रोगाणुओं के आक्रमण की संभावना को कम करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।


नौ दिन की पूजा

नवरात्रि के दौरान हर तीन दिन में एक देवी की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन मां दुर्गा, अगले तीन दिन मां लक्ष्मी और अंतिम दो दिन मां सरस्वती की पूजा होती है। इस दौरान कन्या पूजा भी की जाती है, जिसमें नौ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है।