निर्जला एकादशी 2025: सिद्धि योग में दान और पूजा से प्राप्त करें अक्षय पुण्य
निर्जला एकादशी का महत्व
इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस बार सिद्धि योग के कारण, इन पर्वों पर किए गए जप, तप और दान का फल अधिक होगा। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।
गंगा दशहरा का महत्व
इस अवसर पर गंगा जी की पूजा, स्नान और ध्यान करने से व्यक्ति के दस पापों का नाश होता है। इसमें तीन कायक, चार वाचिक और तीन मानसिक पापों का समावेश होता है, इसलिए इसे गंगा दशहरा कहा जाता है।
दान की सामग्री
पूजा में 10 प्रकार के फूल, दशांग धूप, दस दीपक, दस प्रकार के निवेद्य, दस तांबुल और दस फल शामिल होने चाहिए। दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देने से लाभ होता है। दान में दिए जाने वाले जौ और तिल की मात्रा 16-16 मुट्ठी होनी चाहिए।
स्नान और पूजा विधि
खेड़ा शिव मंदिर के पुजारी सुभाष चंद शर्मा के अनुसार, स्नान करते समय डुबकी लगाना आवश्यक है। इस दिन गंगा अवतरण की कथा सुनने का विधान है और राजा भगीरथ का नाम मंत्र से पूजा करनी चाहिए।
निर्जला एकादशी का व्रत
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। अन्य महीनों की एकादशी में फलाहार किया जाता है, लेकिन निर्जला एकादशी पर न तो फल और न ही जल का सेवन करना चाहिए। यह एकादशी विशेष महत्व रखती है।
एकादशी का व्रत करने से आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है और उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार, यदि एक वर्ष में 26 एकादशियां नहीं की जा सकें, तो भी निर्जला एकादशी का व्रत पर्याप्त होता है।
निर्जला एकादशी का समय
इस बार निर्जला एकादशी का व्रत शुक्रवार सुबह 4:17 मिनट से शुरू होगा और शनिवार सुबह 4:49 बजे समाप्त होगा। इस दिन जल से भरा मिट्टी का घड़ा, चीनी शर्बत, पंखा, फल आदि का दान किया जाता है।