पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व और पितृपक्ष की प्रक्रिया
पूर्णिमा श्राद्ध का आयोजन हिंदू धर्म में पितरों की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह विशेष दिन पितरों की आत्मा को शांति देने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है। जानें कैसे इस दिन श्राद्ध किया जाता है, इसका महत्व क्या है और पितृपक्ष की प्रक्रिया कैसे होती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस प्रकार से आप अपने पूर्वजों की आराधना कर सकते हैं और इस दौरान क्या विशेष ध्यान रखना चाहिए।
Sep 7, 2025, 10:03 IST
पितरों की पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ पूर्वजों की आराधना को भी अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह माना जाता है कि पितर हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हर वर्ष पितृपक्ष के 15 दिनों के दौरान, पितर धरती पर आकर अपने वंशजों से श्राद्ध और तर्पण की अपेक्षा करते हैं। इस समय तर्पण, श्राद्ध और दान के माध्यम से उन्हें संतुष्ट किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को उन्नति का आशीर्वाद देते हैं.
पूर्णिमा तिथि का महत्व
आज, 07 सितंबर 2025 को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है, जिस दिन श्राद्ध का आयोजन किया जाता है। इस तिथि पर जल अर्पण, तिल तर्पण और श्राद्ध भोजन कराने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पूर्णिमा तिथि पर श्राद्ध करने से व्यक्ति को पितृदोष से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व
इस श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध भी कहा जाता है, जो उन लोगों के लिए किया जाता है जिनका निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष की शुरुआत से पहले एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। सभी अनुष्ठान दोपहर 12 बजे के बाद से मध्य रात्रि से पहले समाप्त कर लेना चाहिए। अनुष्ठान के अंत में तर्पण करना आवश्यक है, जो पितरों को तृप्त करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
पितृपक्ष की अवधि
हर वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन आश्विन माह की अमावस्या को होता है। पितृ पक्ष 15 दिनों तक चलता है, जिसमें हर तिथि को पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। इस वर्ष, पितृपक्ष 07 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 को महालया अमावस्या के दिन समाप्त होगा.
पूर्णिमा श्राद्ध कैसे करें
श्राद्ध कर्म में पितरों के नाम से तर्पण, दान और ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है, और उन्हें यथानुसार दान-दक्षिणा दी जाती है। यह माना जाता है कि इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से यह सीधे हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है। इसके बाद शुभ मुहूर्त में नदी या घर पर तर्पण किया जाता है। इस दिन सात्विक भोजन और दान का विशेष महत्व होता है। श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कौए, गाय और कुत्ते को भी दिया जाता है, क्योंकि इन्हें पूर्वजों का प्रतिनिधि माना जाता है.