×

पौष माह की शुरुआत: जानें इस महीने के विशेष नियम

पौष माह की शुरुआत के साथ, जानें इस महीने के विशेष नियम और उपासना विधि। यह महीना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जिसमें कुछ कार्य वर्जित हैं। जानें कि आपको क्या करना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए। इस लेख में पौष माह के दौरान पालन करने योग्य नियमों और उपासना विधियों की जानकारी दी गई है।
 

पौष माह की विशेषताएँ


पौष माह के नियम
हिंदू कैलेंडर के 10वें महीने पौष की शुरुआत आज से हो गई है। यह महीना धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दौरान खरमास होता है और सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं। इस महीने कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है, अन्यथा देवी-देवता नाराज हो सकते हैं।


पौष माह में न करें ये काम

खरमास के कारण इस महीने मांगलिक कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दौरान शुभ कार्य करने से उनका फल अच्छा नहीं मिलता। विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, जनेऊ संस्कार, और नए व्यवसाय की शुरुआत जैसे कार्यों से बचना चाहिए।


तामसिक भोजन का सेवन न करें। धार्मिक ग्रंथों में पौष माह को तपस्या और सात्विकता का महीना बताया गया है, इसलिए खान-पान पर ध्यान देना आवश्यक है।


मांस और मदिरा का सेवन न करें

इस माह मांस, मदिरा और किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए। तामसिक भोजन जैसे लहसुन और प्याज से भी परहेज करें। इससे मन अशांत होता है और पूजा-पाठ में बाधा आती है। इस दौरान मूली, बैंगन, उड़द दाल, फूलगोभी, मसूर दाल, तले हुए व्यंजन और अत्यधिक चीनी का सेवन न करें।


अन्न दान का महत्व

पौष माह में सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व है। इस महीने अन्न दान करना बहुत शुभ माना जाता है। जरूरतमंदों को अन्न, चावल और गेहूं का दान अवश्य करें।


कटु वचन से बचें

इस महीने वाणी पर संयम रखना चाहिए। किसी का अपमान करना या कटु वचन बोलना महापाप माना जाता है। ऐसा करने से सूर्य देव का प्रकोप झेलना पड़ सकता है, जिससे मान-सम्मान और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।


पौष माह में क्या करें?


  • हर सुबह स्नान के बाद सूर्य देव की उपासना करें।

  • तांबे के लोटे में जल, लाल चंदन और लाल फूल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।

  • अर्घ्य देते समय ॐ घृणि: सूर्याय नम: मंत्र का जप करें।

  • हर रविवार को व्रत रखें।

  • जरूरतमंदों को कंबल और गर्म कपड़े दान करें।

  • तिल, गुड़ और तिल-चावल की खिचड़ी का दान करें।

  • पितरों का तर्पण करें।

  • विष्णु जी और मां लक्ष्मी की पूजा करें।

  • भगवद गीता का पाठ करें।