भगवती कात्यायनी: नवरात्रि के छठे दिन की महिमा
कात्यायनी का पौराणिक महत्व
भगवती दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। मान्यता के अनुसार, माता कात्यायनी ने भक्तों के कल्याण के लिए परम शक्ति के रूप में प्रकट होकर असुरों के आतंक को समाप्त किया। इनका नाम महर्षि कात्यायन के पुत्र कात्य के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इनकी पूजा की।
नवरात्रि का छठा दिन
28 सितंबर को शारदीय नवरात्र का छठा दिन मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब दैत्यों और असुरों का अत्याचार बढ़ता है, तब देवी कात्यायनी का अवतार होता है। उन्होंने महिषासुर जैसे दैत्यों का संहार कर धरती का उद्धार किया। देवी कात्यायनी, नवदुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक हैं।
कात्यायनी का स्वरूप और पूजा
कात्यायनी का स्वरूप चार भुजाओं वाला है, जिसमें दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और वर मुद्रा है, जबकि बाएं हाथ में तलवार और कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है। नवरात्रि के दौरान इनकी पूजा का समय आश्विन या चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को प्रात: का समय अत्यंत शुभ माना जाता है।
कात्यायनी की आराधना
कात्यायनी की भक्ति से भक्तों को अर्थ, कर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी कात्यायनी का पूजन लाल रंग से जुड़ा हुआ है। नवरात्रि के छठे दिन उनकी आराधना से भक्त का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है, जो योग साधना में महत्वपूर्ण है।
कात्यायनी की कथाएँ
एक पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए गोपियों ने माता कात्यायनी की आराधना की थी। माता ने उन्हें वांछित वर प्रदान किया। वामन पुराण में देवी कात्यायनी का विस्तृत वर्णन है।
कात्यायनी का महत्व
कात्यायनी माता को शहद प्रिय होने के कारण नवरात्रि के छठे दिन उन्हें शहद का भोग अर्पित किया जाता है। देवी कात्यायनी सभी संकटों का नाश करने वाली हैं। उनके गुणों का शोध कार्य भी महत्वपूर्ण है।
मंत्र और आराधना
कात्यायनी माता की आराधना के लिए कई मंत्रों का उपयोग किया जाता है। भक्तों को सुख, शांति और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली माता कात्यायनी की पूजा से जीवन में सकारात्मकता आती है।
कात्यायनी की विशेष पूजा
कात्यायनी की पूजा विशेष रूप से सौभाग्य की कामना करने वाली कन्याओं द्वारा की जाती है। नवरात्रि के छठे दिन उनकी आराधना से अनुकूल जीवन साथी की प्राप्ति होती है।