भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा: आस्था और एकता का प्रतीक
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, जो हर साल ओडिशा के पुरी में आयोजित होती है, केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आस्था, भक्ति और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को विशाल रथों में जनसामान्य के दर्शन हेतु लाया जाता है। जानें इस भव्य उत्सव की परंपराएं, विशेषताएं और इसके पीछे की कथा।
Jun 25, 2025, 12:05 IST
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का महत्व
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का एक विशेष स्थान है। हर साल ओडिशा के पुरी में आयोजित होने वाली यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आस्था, भक्ति और सामाजिक एकता का एक भव्य उत्सव भी है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशाल रथों में श्रीमंदिर से बाहर लाया जाता है ताकि श्रद्धालु उन्हें देख सकें।
रथ यात्रा की परंपरा
भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। यह रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है, जिसे 'रथ द्वितीया' कहा जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं सदी से भी पहले हुई थी।
रथ यात्रा की विशेषताएं
तीन रथ: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए अलग-अलग विशाल रथ बनाए जाते हैं। ये रथ हर साल नए लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम 'नंदिघोष', बलभद्र के रथ का नाम 'तालध्वज' और सुभद्रा के रथ का नाम 'दर्पदलन' होता है।
गुंडिचा मंदिर यात्रा: रथ यात्रा के दौरान भगवान अपने भाई-बहन के साथ श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर जाते हैं। वहां वे सात दिन तक विश्राम करते हैं और फिर 'बहुड़ा यात्रा' के माध्यम से वापस लौटते हैं।
छेरा पहरा: पुरी के गजपति महाराज स्वयं सोने की झाड़ू से रथ की सफाई करते हैं, जिसे ‘छेरा पहरा’ कहा जाता है। यह राजा द्वारा भगवान के प्रति अपनी सेवा का प्रतीक है।
समाज में एकता का प्रतीक
जगन्नाथ यात्रा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की समरसता और समानता का प्रतीक भी है। इस उत्सव में जाति, वर्ग, धर्म और लिंग की सीमाएं टूट जाती हैं। सभी लोग मिलकर रथ को खींचते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं। यह यात्रा यह संदेश देती है कि भगवान सभी के हैं और वे स्वयं जनता के बीच आकर उन्हें दर्शन देते हैं।
रथ यात्रा की कथा
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की कथा: द्वारिका में श्री कृष्ण एक रात अचानक राधे-राधे बोल पड़े, जिससे महारानियों में आश्चर्य फैल गया। रुक्मिणी ने अन्य रानियों से कहा कि राधा नाम की गोपकुमारी है, जिसे प्रभु ने नहीं भुलाया। इस पर सभी महारानियों ने माता रोहिणी से जानकारी प्राप्त करने की प्रार्थना की।
माता रोहिणी ने कहा कि सुभद्रा को पहले पहरे पर बिठा दो। जब माता रोहिणी ने कथा शुरू की, तब श्रीकृष्ण और बलराम अंत:पुर की ओर आए। इस दौरान सुभद्रा ने उन्हें रोक लिया। इस प्रकार, भगवान की रासलीला की वार्ता सुनकर तीनों भाव-विभोर हो गए।