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रक्षाबंधन पर सुराणा गांव की अनोखी परंपरा: क्यों नहीं मनाते हैं भाई-बहन का यह त्योहार?

रक्षाबंधन का त्योहार भारत में भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है, लेकिन गाजियाबाद के सुराणा गांव में इसे नहीं मनाया जाता। यहां की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, राखी बांधना अशुभ माना जाता है। इस गांव के लोग रक्षाबंधन को श्रद्धांजलि दिवस के रूप में मनाते हैं, जहां वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं। जानें इस अनोखी परंपरा के पीछे का भयावह इतिहास और गांव के युवाओं की सोच।
 

रक्षाबंधन: भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक

रक्षाबंधन का त्योहार भारत में भाई-बहन के अटूट संबंधों का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष, 19 अगस्त को देशभर में रक्षाबंधन की धूम देखने को मिल रही है। बाजार रंग-बिरंगी राखियों और उपहारों से भरे हुए हैं। बहनें अपने भाइयों के लिए खूबसूरत राखियां चुन रही हैं, जबकि भाई भी अपनी बहनों को खास उपहार देने की तैयारी में हैं।


सुराणा गांव की अनोखी परंपरा

हालांकि, गाजियाबाद से 35 किलोमीटर दूर मुरादनगर तहसील के सुराणा गांव में रक्षाबंधन का कोई उत्सव नहीं मनाया जाता। यहां की प्राचीन परंपरा के अनुसार, राखी बांधना अशुभ माना जाता है। गांव के लोग इस दिन न तो पूजा करते हैं और न ही सजते-संवरते हैं। जानिए, इस गांव में रक्षाबंधन मनाने से लोग क्यों डरते हैं।


भयावह इतिहास का असर

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुराणा गांव के घूमेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी अखिलेश शर्मा बताते हैं कि पहले इस गांव का नाम सोहनगढ़ था। इतिहास के अनुसार, यहां पृथ्वीराज चौहान के वंशज निवास करते थे। जब मोहम्मद गौरी को इस बात का पता चला, तो उसने गांव पर हमला कर दिया और जंगली हाथियों को उकसाकर गांव के निर्दोष बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को कुचलवा दिया। यह भयानक घटना रक्षाबंधन के दिन हुई थी।


श्रद्धांजलि का दिन

उस नरसंहार की याद में छाबड़िया गोत्र के लोग आज भी इस दिन कोई उत्सव नहीं मनाते। गांव में रक्षाबंधन को श्रद्धांजलि दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहां की बहनें भाइयों को राखी नहीं बांधतीं और कोई पारंपरिक रिवाज नहीं होते। इसके बजाय, परिवार एकत्र होकर अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


परंपरा का सम्मान

गांव के युवा बताते हैं कि वे अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं और इस परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना अपना कर्तव्य मानते हैं। एक युवक ने कहा, 'हम जानते हैं कि यह त्योहार बाकी देश के लिए खुशी का दिन है, लेकिन हमारे लिए यह दुख और बलिदान की याद दिलाता है। हम चाहते हैं कि यह परंपरा ऐसे ही बनी रहे।'


क्या बदलेंगे समय के साथ?

हालांकि नई पीढ़ी सोशल मीडिया और बाहरी दुनिया से जुड़ी है, फिर भी इस परंपरा में बदलाव की कोई चर्चा नहीं है। हर साल की तरह इस साल भी सुराणा गांव में राखी नहीं बंधेगी, लेकिन अपने परिजनों के बलिदान की याद आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।