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शारदीय नवरात्र: जानें इसकी शुरुआत और महत्व

शारदीय नवरात्र का पर्व 22 सितंबर से शुरू होकर एक अक्टूबर तक चलेगा। यह पर्व शक्ति की उपासना का उत्सव है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत कैसे हुई, इसका ऐतिहासिक संदर्भ क्या है, और इसे भारत के विभिन्न राज्यों में कैसे मनाया जाता है। जानें इस पर्व का महत्व और सांस्कृतिक पहलू।
 

शारदीय नवरात्र का महत्व


शारदीय नवरात्र का आरंभ
शारदीय नवरात्र का पर्व 22 सितंबर से शुरू हो चुका है और यह एक अक्टूबर को समाप्त होगा। इस दौरान दुर्गा पूजा का पर्व भी मनाया जाता है, विशेषकर पश्चिम बंगाल में इसकी धूमधाम देखने को मिलती है। इस पावन समय में भक्तजन व्रत रखते हैं और देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं।


नवरात्र का ऐतिहासिक संदर्भ

यह पर्व शक्ति की उपासना का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जिसकी जड़ें अकाल बोधन की कथा से जुड़ी हुई हैं। क्या आप जानते हैं कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानते हैं।


शारदीय नवरात्र का आधार


त्रेतायुग में, जब भगवान श्रीराम रावण का वध करने के लिए लंका पहुंचे, तब देवताओं ने उन्हें मां दुर्गा की आराधना करने का सुझाव दिया। नवरात्रि आमतौर पर चैत्र और आश्विन मास में आती है, लेकिन उस समय दक्षिणायन काल था, जब देवता योग निद्रा में होते हैं। इस दौरान पूजा करना शास्त्रों के अनुसार संभव नहीं था।


श्रीराम का अकाल बोधन

श्रीराम ने मां दुर्गा का अकाल बोधन किया, अर्थात उन्हें उनके निर्धारित समय से पहले जगाया। उन्होंने गहरी श्रद्धा और शुद्ध हृदय से मां दुर्गा की उपासना की, जिससे मां दुर्गा प्रसन्न होकर उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। इसके परिणामस्वरूप दशमी के दिन रावण का वध हुआ, जिसे विजयदशमी या दशहरा कहा जाने लगा।


शारदीय नवरात्र का महत्व

इसी घटना से प्रेरित होकर शारदीय नवरात्र की शुरुआत हुई। माना जाता है कि जब भी जीवन में कोई बड़ा संकट आता है, तब मां दुर्गा की आराधना से शक्ति, साहस और विजय प्राप्त होती है। इसलिए आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली नवरात्र को विशेष रूप से मां दुर्गा की उपासना का पर्व माना जाता है।


सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू

भारत के विभिन्न राज्यों में शारदीय नवरात्र को विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। बंगाल में इसे दुर्गा पूजा के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहां भव्य पंडाल और प्रतिमाओं की स्थापना होती है। गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया का आयोजन इस पर्व का सांस्कृतिक रंग बढ़ाता है।


उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा के माध्यम से श्रीराम की लीला और रावण-वध की गाथा प्रस्तुत की जाती है। इन सभी परंपराओं के माध्यम से नवरात्र न केवल भक्ति और आराधना का समय है, बल्कि सांस्कृतिक एकता और सामूहिक उत्सव का प्रतीक भी बन जाती है।