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शारदीय नवरात्रि 2025: कला के माध्यम से देवी दुर्गा की उपासना

शारदीय नवरात्रि 2025 एक विशेष अवसर है जब देवी दुर्गा की उपासना कला के माध्यम से की जाती है। इस दौरान भक्त अपनी रचनात्मकता से मां दुर्गा की शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। ओडिशा की पटचित्र कला और कालीघाट पटचित्र जैसे विभिन्न कला रूपों के माध्यम से देवी की पूजा की जाती है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में परंपरा और आधुनिकता का संगम दर्शाता है। जानें इस नवरात्रि के महत्व और देवी दुर्गा की आराधना के अनूठे तरीकों के बारे में।
 

शारदीय नवरात्रि का महत्व

शारदीय नवरात्रि 2025: यह पर्व देवी दुर्गा की आराधना का एक विशेष अवसर है, जिसमें कला के माध्यम से उनकी पूजा की जाती है। इस दौरान रचनात्मकता, ध्यान, कौशल, विवेक, धैर्य, मन और बुद्धि की शुद्धि के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। देवी दुर्गा विभिन्न कलाओं में निवास करती हैं, और कलाकार अपनी रचनाओं के जरिए उनकी पूजा करते हैं। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, कलाकार अपनी कला के माध्यम से मां दुर्गा की अपार शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। उनकी कृतियों में देवी को सिंह पर सवार, अनेक भुजाओं वाली और महिषासुर का वध करते हुए दर्शाया जाता है। मान्यता है कि देवी दुर्गा भारतीय कलाओं में विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं। संगीत साधक मां दुर्गा के सरस्वती स्वरूप की पूजा करते हैं, जबकि भजन, कीर्तन और नृत्य करने वाले भक्त अपनी कला के जरिए देवी की आराधना करते हैं।


सर्वोच्च ऊर्जा और शक्ति

सर्वोच्च ऊर्जा और शक्ति:
देवी दुर्गा को सर्वोच्च ऊर्जा और शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, और कला के माध्यम से इस ऊर्जा के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट किया जाता है।


पटचित्र कला

पटचित्र (Pattachitra):
विशेष रूप से ओडिशा में, देवी दुर्गा और अन्य देवताओं के चित्रण पटचित्र कला के माध्यम से कपड़े पर किया जाता है।


कालीघाट पटचित्र

कालीघाट पटचित्र:
कोलकाता के कालीघाट मंदिर के निकट एक कला विद्यालय था, जहाँ देवी दुर्गा के चित्र अपनी गहरी रेखाओं, जीवंत रंगों और सरल आकृतियों के लिए प्रसिद्ध हैं। देवी दुर्गा अपने भक्तों को विश्वास और श्रद्धा से प्रेरित करती हैं।


संस्कृति और पहचान

संस्कृति और पहचान का संगम:
दुर्गा की कलाएँ बंगाल और भारत की संस्कृति में गहराई से निहित हैं, जो परंपरा और आधुनिकता के संगम को दर्शाती हैं।