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सर्व पितृ अमावस्या: पितरों के लिए दीप दान का महत्व

सर्व पितृ अमावस्या, जो 21 सितंबर को मनाई जाएगी, पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन लोग अपने पितरों के लिए दीप जलाते हैं और श्राद्ध का आयोजन करते हैं। यह दिन पितरों के विदाई का भी है, जब उन्हें पितृ लोक की ओर लौटने के लिए विदा किया जाता है। जानें इस दिन के महत्व और दीप दान की विधि के बारे में।
 

सर्व पितृ अमावस्या का महत्व


पितृ विसर्जन का दिन
सर्व पितृ अमावस्या, जो 21 सितंबर रविवार को मनाई जाएगी, पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन लोग अपने पितरों के लिए दीप जलाते हैं, क्योंकि यह पितृ पक्ष का समापन होता है। इस दिन पितर धरती से पितृ लोक की ओर लौटते हैं, इसलिए इसे पितृ विसर्जन भी कहा जाता है।


इस दिन सभी प्रकार के पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और दान करने की परंपरा है, जिससे इसे सर्व पितृ अमावस्या कहा गया है। इस दिन हर व्यक्ति को अपने पितरों के लिए दीप जलाना चाहिए।


श्राद्ध का महत्व


21 सितंबर को अमावस्या पूरे दिन रहेगी, जो रात 12:18 एएम तक जारी रहेगी। इस दिन उन पितरों का भी श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है। सर्व पितृ अमावस्या पर ज्ञात और अज्ञात सभी पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध का आयोजन किया जाता है।


आत्माओं की मुक्ति


ज्योतिषाचार्य पाण्डेय के अनुसार, यदि किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध तीन साल तक नहीं किया जाता है, तो उसकी आत्मा प्रेत योनि में चली जाती है। इसलिए, धरती पर रहने वाली आत्माओं की मुक्ति के लिए श्राद्ध करना आवश्यक है।


दीपदान का महत्व


सर्व पितृ अमावस्या पर दोपहर में 3 या 6 ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा देकर विदा करने की परंपरा है। शाम को पितरों के लिए दीपदान किया जाता है।


मान्यता है कि दीपदान से पितरों के मार्ग में अंधकार नहीं रहता और वे संतुष्ट होकर अपने वंश की उन्नति का आशीर्वाद देकर पितृलोक लौटते हैं। यह पितृपक्ष का अंतिम दिन है जब पितरों को विदा किया जाता है और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। इस दिन श्राद्ध, दान-पुण्य और दीपदान का विशेष महत्व है।