सर्वपितृ अमावस्या: पितरों के प्रति श्रद्धा और तर्पण का दिन
सर्वपितृ अमावस्या, जो 21 सितंबर को मनाई जाएगी, हिंदू धर्म में पितरों के प्रति श्रद्धा और तर्पण का महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। जानें इस दिन के महत्व, पूजा विधियों और उन बातों के बारे में जो आपको इस दिन ध्यान में रखनी चाहिए। पितरों को प्रसन्न करने के लिए क्या करें और क्या न करें, इस पर भी चर्चा की गई है।
Sep 20, 2025, 12:21 IST
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाएगी, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन है। इसे पितृ मोक्ष अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। कुछ विशेष बातों का ध्यान रखकर आप अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। आइए, हम इस दिन के महत्व पर चर्चा करते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या के बारे में जानकारी
इस दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान देकर पितरों को तृप्त किया जाता है, और वे जाते समय अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। सर्वपितृ अमावस्या पर कई शुभ योग बनते हैं, जो पितरों की पूजा करने से व्यक्ति पर पूर्वजों की कृपा बरसाते हैं। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, उचित विधि से पितरों के नाम पर दी गई वस्तु श्राद्ध कहलाती है। इस दिन भोजन बनाकर कौवे, गाय और कुत्ते को भी खिलाया जाता है।
स्नान-दान का मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:34 से 05:22 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:16 से 03:04 बजे तक
तर्पण मुहूर्त
कुतुप मुहूर्त: 11:50 से 12:38 बजे तक
रौहिण मुहूर्त: 12:38 से 01:27 बजे तक
सर्वपितृ अमावस्या पर ध्यान देने योग्य बातें
इस दिन पितरों की पूजा करना आवश्यक है। पितृ पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या पितृ दोष से मुक्ति का अंतिम अवसर है। इस दिन कुछ कार्य नहीं करने से पितर नाराज हो सकते हैं।
सात्विक भोजन बनाएं: इस दिन पितरों के लिए शुद्ध और सात्विक भोजन बनाना चाहिए, जिसमें तामसिक चीजें जैसे प्याज और लहसुन नहीं होनी चाहिए।
तर्पण और पिंडदान: पितरों का तर्पण और पिंडदान अवश्य करें, इसके लिए योग्य पंडित की मदद लें। तर्पण के समय जल में तिल और जौ मिलाना चाहिए।
कौओं को भोजन: इस दिन कौओं को पितरों के नाम से भोजन देना चाहिए।
पीपल की पूजा: पीपल के पेड़ को पितरों का वास माना जाता है। इस दिन जल चढ़ाएं और शाम को सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
क्षमा मांगें: पितरों से हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें और उनका आशीर्वाद लें।
सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध कैसे करें
इस दिन व्यक्ति को पवित्र होकर अपने पितरों की तस्वीर को दक्षिण दिशा में रखकर गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। इसके बाद पुष्प-माला अर्पित करें और धूप-दीप दिखाएं। पंचबलि निकालें और पितरों के लिए भोग लगाएं। ब्राह्मण को भोजन कराने के लिए एक दिन पहले आमंत्रित करें और उन्हें यथाशक्ति दान दें।
सर्वपितृ अमावस्या पर क्या करें
यदि संभव हो तो इस दिन किसी नदी या पीपल के नीचे श्राद्ध करें। पितरों के लिए श्रद्धा से तर्पण और पिंडदान करें। गाय, कुत्ते, कौवे और चींटी के लिए भोग निकालना न भूलें। एक या तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित करें।
सुबह जल्दी उठकर बिना साबुन के स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। पितरों के तर्पण के लिए सात्विक पकवान बनाएं। शाम को सरसों के तेल के चार दीपक जलाएं।
सर्वपितृ अमावस्या पर न करें ये काम
तर्पण न करने से: इस दिन पितरों के लिए तर्पण करना आवश्यक है। यदि तर्पण नहीं किया गया तो पितर नाराज हो सकते हैं।
श्राद्ध न करने से: ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
दान न करने से: पितरों के लिए दान करना आवश्यक है।
पंचबलि कर्म न करने से: इस दिन जो भी भोजन बनाते हैं, उसका कुछ हिस्सा गाय, कौआ, कुत्ता आदि को अर्पित करना चाहिए।
दीपक जलाना भी आवश्यक है ताकि पितरों के मार्ग में अंधेरा न हो।
सर्वपितृ अमावस्या से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन कथाओं के अनुसार, अग्निष्वात और बर्हिषपद नाम के पितृ देव थे। उनकी मानस कन्या अक्षोदा ने तपस्या की थी। तप से प्रसन्न होकर पितर देवता प्रकट हुए। अक्षोदा ने अमावसु से वरदान मांगा, जिससे सभी पितर नाराज हो गए। उन्होंने उसे श्राप दिया कि वह पृथ्वी पर जाएगी। बाद में, पितरों ने दया दिखाते हुए उसे मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।
इस दिन को सर्व पितृ अमावस्या के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।