सावन शिवरात्रि: भगवान शिव की आराधना का विशेष पर्व
सावन शिवरात्रि का महत्व
भगवान शिव का दिन, शिवरात्रि, विशेष रूप से पवित्र माना जाता है और इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। साल में मनाए जाने वाले शिवरात्रियों में से फाल्गुन महाशिवरात्रि और सावन शिवरात्रि का विशेष महत्व है। सावन शिवरात्रि, जो आमतौर पर जुलाई या अगस्त में आती है, कांवड़ यात्रा के समापन का दिन भी है। इस वर्ष, यह पर्व 23 जुलाई को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 23 जुलाई को सुबह 4:39 बजे से शुरू होकर 24 जुलाई को रात 2:24 बजे समाप्त होगी। श्रद्धालु इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकते हैं।
जलाभिषेक की धार्मिक मान्यता
भक्तगण विभिन्न तीर्थ स्थानों से गंगाजल लेकर अपने स्थानीय शिव मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन शिवरात्रि का दिन गंगाजल से जलाभिषेक करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन गंगाजल से अभिषेक करने और विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। यह व्रत दांपत्य जीवन में प्रेम और सुख-शांति बनाए रखने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
शिव की आराधना और उनके गुण
भगवान शिव को सभी देवों में सबसे अधिक पूजनीय माना जाता है क्योंकि वे अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होते हैं। दूध या जल की धारा, बेलपत्र और भांग की भेंट से वे अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। भारत में हर गांव में भगवान शिव का कोई न कोई मंदिर अवश्य होता है। शिव की आराधना का एक विशेष पहलू यह है कि उनकी जयंती के बजाय रात्रि को मनाया जाता है, जो पाप और अज्ञानता का प्रतीक है।
भगवान शिव का विषपान
भगवान शिव के मस्तक पर अर्द्धचंद्र का होना समुद्र मंथन के समय की घटना से जुड़ा है, जब उन्होंने सृष्टि को बचाने के लिए विष का पान किया। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए उन्होंने चंद्रमा की एक कला को अपने मस्तक पर धारण किया। इस कारण से उन्हें 'नीलकंठ' कहा जाता है।