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हरछठ व्रत की प्रेरणादायक कथा: मातृत्व और सच्चाई का संदेश

हरछठ व्रत की कथा एक ग्वालिन की प्रेरणादायक कहानी है, जो मातृत्व और सच्चाई के महत्व को दर्शाती है। इस कथा में ग्वालिन अपने बच्चे को छोड़कर दूध-दही बेचने निकलती है, लेकिन उसके झूठ का परिणाम भयानक होता है। पश्चाताप और क्षमा की राह पर चलकर वह अपने बच्चे को पुनः जीवित पाती है। जानें इस विशेष पर्व की गहराई और हरछठ माता की कृपा के चमत्कार के बारे में।
 

हरछठ व्रत की कहानी

हरछठ व्रत कथा: मातृत्व की महिमा: हरछठ, जिसे ललही छठ या हल षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, की कहानी अत्यंत प्रेरणादायक है। प्राचीन समय में एक ग्वालिन थी, जो जल्द ही मां बनने वाली थी। एक ओर उसे प्रसव की चिंता थी, वहीं दूसरी ओर वह अपने दूध-दही के व्यापार को लेकर चिंतित थी। उसे डर था कि प्रसव के बाद उसका दूध-दही बेकार हो जाएगा। इस चिंता में उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखकर बेचने का निर्णय लिया। लेकिन रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। उसने पास की झरबेरी के नीचे शरण ली और वहीं एक बच्चे को जन्म दिया।


हालांकि, ग्वालिन ने अपने नवजात शिशु को वहीं छोड़कर दूध-दही बेचने का निर्णय लिया। उस दिन हल षष्ठी थी। उसने गाय और भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर गांव वालों को बेच दिया। इस बीच, जिस झरबेरी के नीचे उसने अपने बच्चे को छोड़ा था, वहां पास के खेत में एक किसान हल चला रहा था। अचानक किसान के बैल भड़क गए, और हल का फल बच्चे के शरीर में घुस गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।


पश्चाताप और क्षमा की राह

हरछठ व्रत कथा: पश्चाताप और क्षमा का रास्ता


किसान को इस घटना का बहुत दुख हुआ। उसने हिम्मत जुटाकर बच्चे के चीरे हुए पेट में झरबेरी के कांटों से टांके लगाए और वहां से चला गया। जब ग्वालिन अपने बच्चे के पास लौटी और उसकी स्थिति देखी, तो उसे समझते देर न लगी कि यह सब उसके झूठ का परिणाम है। उसने मन में सोचा कि अगर उसने गांव वालों को झूठ न बोला होता, तो उसके बच्चे की ऐसी हालत न होती। ग्वालिन ने प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। उसने गांव में लौटकर अपनी गलती सबके सामने स्वीकार की।


वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसकी सजा के बारे में बताने लगी। गांव की महिलाओं ने उसकी सच्चाई देखकर उसे माफ कर दिया और आशीर्वाद दिया। जब ग्वालिन दोबारा झरबेरी के नीचे पहुंची, तो वह दंग रह गई। उसका बेटा जीवित था! यह देखकर उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान माना और कभी झूठ न बोलने की कसम खाई।


हरछठ माता की कृपा

हरछठ माता की एक और कथा


हरछठ की एक और कथा एक राजा से जुड़ी है। इस राजा ने जल के लिए एक विशाल सागर खुदवाया और घाट बनवाए, लेकिन उसमें पानी नहीं आया। चिंतित राजा ने गांव के पुरोहित से उपाय पूछा। पुरोहित ने बताया कि अगर राजा अपने बड़े बेटे या बेटी की बलि दे दें, तो सागर में पानी आ सकता है। यह सुनकर राजा और चिंतित हो गए। पुरोहित ने सुझाव दिया कि राजा अपनी बहू को यह कहकर मायके भेज दें कि उसकी मां की तबीयत खराब है। राजा ने ऐसा ही किया।


यह सुनकर बहू दुखी हो गई और हरछठ के दिन रोती-पीटती मायके के लिए निकल पड़ी। मायके पहुंचने पर उसकी मां ने उसे परेशान देखकर पूछा, “हम तो ठीक हैं, फिर तुम इस हाल में क्यों आईं?” बहू ने सारी बात बताई। मां ने कहा, “बेटी, सुना है तुम्हारे ससुर ने सागर बनवाया है, जिसमें पानी नहीं आ रहा। इसके लिए किसी की बलि चाहिए। तुम्हारे साथ छल हुआ है, जल्दी लौट जाओ।”


हरछठ माता का चमत्कार

हरछठ माता का चमत्कार


मां की बात सुनकर बहू तुरंत ससुराल के लिए निकल पड़ी। रास्ते में वह हरछठ माता की मनौती करती रही। जब वह सागर के पास पहुंची, तो देखा कि वह जल से लबालब भरा हुआ है। वहां एक बालक खेल रहा था, जो कोई और नहीं, उसका अपना बेटा था। बहू ने उसे गोद में उठाया और हरछठ माता को धन्यवाद दिया। घर पहुंचने पर उसने देखा कि दरवाजा बंद है। उसने सास-ससुर को सारी बात बताई और कहा, “आज मेरी सच्चाई और हरछठ माता की कृपा से मेरा बेटा जीवित है।” सास-ससुर अपने पोते को जीवित देखकर खुशी से झूम उठे और बहू को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा, “हरछठ माता ने हमारे कुल का दीया जगा दिया।”