हिमाचल प्रदेश में 'रौलाने' त्योहार: अनोखी परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर
किन्नौर में 'रौलाने' त्योहार की धूम
किन्नौर: हिमाचल प्रदेश के सुरम्य किन्नौर जिले में, जैसे ही सर्दियों का आगमन होता है, 'रौलाने' त्योहार की धूम मच जाती है। इस विशेष सांस्कृतिक उत्सव के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहे हैं। इन तस्वीरों में दो पुरुष, शादीशुदा जोड़े के रूप में, अपने चेहरों को ढककर पारंपरिक संगीत पर नाचते और गाते हुए नजर आ रहे हैं।
'रौलाने' त्योहार पूरी तरह से 'रौलाने सौणी' नामक पहाड़ी परियों को समर्पित है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब सर्दियों में ठंड बढ़ने लगती है, तब ये सौणी (परियां) अपने ऊंचे महलों से नीचे गांवों में आती हैं।
कहा जाता है कि ये परियां पूरे सर्दी के मौसम में गांव में रहकर ग्रामीणों की रक्षा करती हैं और जैसे ही गर्मियों का आगमन होता है, वे वापस अपने महलों को लौट जाती हैं। इस त्योहार का आयोजन इन परियों को खुश करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इस उत्सव की सबसे अनोखी परंपरा दो पुरुषों का विवाह है, जिन्हें परियों का रूप माना जाता है।
रौला: एक पुरुष 'रौला' यानी दूल्हा बनता है।
रौलाणे: दूसरा पुरुष 'रौलाणे' यानी दुल्हन बनता है।
दोनों ही पारंपरिक किन्नौरी ऊनी कपड़े पहनते हैं। उनकी विशेषता यह होती है कि उनका चेहरा कपड़े से पूरी तरह ढका होता है और वे दस्ताने पहनते हैं। दुल्हन बना पुरुष चूड़ियां और अन्य आभूषण पहनकर सजता है।
त्योहार के अंतिम दिन, यह अनोखा दूल्हा-दुल्हन जोड़ा गांव के अन्य लोगों के साथ नागिन नारायण मंदिर में दर्शन के लिए जाता है। वहां वे पूरे श्रृंगार के साथ पूजा-अर्चना करते हैं और पारंपरिक नृत्य करते हैं। इसके बाद, वे सभी गांववालों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।