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हिसार में धूमधाम से मनाया जाएगा 77वां दशहरा महोत्सव

हिसार में 77वां दशहरा महोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इस बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतले बनाए जा रहे हैं। रामलीला का आयोजन 22 सितंबर से शुरू होगा, जिसमें हर रात बड़े पर्दे पर प्रदर्शन होगा। 27 सितंबर को भव्य राम बारात निकाली जाएगी, और 2 अक्टूबर को मुख्य समारोह में पुतलों का दहन होगा। यह परंपरा 1948 से चली आ रही है और स्थानीय कलाकारों द्वारा इसे बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
 

दशहरा महोत्सव की तैयारियां

हिसार, दशहरा महोत्सव: हिसार में दशहरा पर्व की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। श्री नृसिंह प्रह्लाद रामलीला सभा इस वर्ष 77वां दशहरा महोत्सव धूमधाम से मनाने की योजना बना रही है। 22 सितंबर से शहर में रामलीला का आयोजन बड़े पर्दे पर किया जाएगा। इस बार रावण का पुतला 45 फीट, कुंभकर्ण का 40 फीट और मेघनाद का 38 फीट ऊंचा बनाया जाएगा। रंग-बिरंगी लाइटों से सजाए गए ये पुतले दहन के समय सभी का ध्यान आकर्षित करेंगे।


रामलीला और भव्य बारात का आयोजन

रामलीला और बारात का शानदार आयोजन


दशहरा महोत्सव की शुरुआत 21 सितंबर को शाम 5 बजे मुलतानी चौक पार्क में झंडा महोत्सव के साथ होगी। 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक हर रात 7 से 10 बजे तक इसी पार्क में बड़े पर्दे पर रामलीला का प्रदर्शन किया जाएगा। सभा के कोषाध्यक्ष भीमसेन नारंग ने बताया कि 27 सितंबर को शाम 4 बजे मुलतानी चौक पार्क से भव्य राम बारात निकाली जाएगी। यह बारात पंजाबी धर्मशाला, राजगुरु मार्केट में पहुंचेगी, जहां 7-8 प्रकार की शानदार झांकियां प्रस्तुत की जाएंगी। 2 अक्टूबर को शाम 5 बजे नई सब्जी मंडी में दशहरा महोत्सव का मुख्य समारोह होगा, जिसमें पुतलों का दहन किया जाएगा।


200 साल पुरानी परंपरा

200 साल पुरानी परंपरा


सभा के प्रधान सुरेश कक्कड़ ने बताया कि यह परंपरा 1948 से चली आ रही है, जब पहली बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए गए थे। इस संस्था की शुरुआत लगभग 200 साल पहले पाकिस्तान के मुलतान शहर से हुई थी। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद यह परंपरा हिसार में शुरू हुई। डॉ. जयदयाल ठकराल और श्यामलाल चावला ने मुलतानी चौक पर रामलीला की नींव रखी। उस समय वहां केवल एक खुला मैदान था, जो अब ऐतिहासिक पहचान बन चुका है।


हिसार में रामलीला का जलवा

हिसार में पर्दे पर रामलीला का जलवा


1948 से 1997 तक रामलीला का मंचन स्थानीय कलाकारों द्वारा किया जाता था। उस समय हजारों लोग इसे देखने आते थे। लेकिन 1997 के बाद से रामलीला बड़े पर्दे पर दिखाई जाने लगी। तब से आज तक यह परंपरा कायम है। लोग इसे देखने के लिए बड़े उत्साह से आते हैं। खास बात यह है कि सभा में आज तक प्रधान, उपप्रधान जैसे पदों के लिए कभी चुनाव नहीं हुआ। सभी का चयन सर्वसम्मति से किया जाता है।