गेहूं की नई किस्म: सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श
बंपर पैदावार के साथ कई लाभ
Wheat Variety, नई दिल्ली: देशभर में खरीफ फसलों की कटाई के साथ रबी सीजन की बुवाई का कार्य प्रारंभ हो गया है। मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की वापसी की संभावना जताई है।
इसलिए, बारिश थमने के कुछ दिनों बाद गेहूं की बुवाई के लिए यह एक उपयुक्त समय हो सकता है। आइए जानते हैं गेहूं की एक ऐसी किस्म के बारे में जो पैदावार में उत्कृष्ट है और सीमित सिंचाई वाले उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
डीबीडब्ल्यू 296
यह गेहूं की किस्म डीबीडब्ल्यू 296 (करण ऐश्वर्या) है, जिसे भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने विकसित किया है। इसे केंद्रीय बुवाई समिति ने दिसंबर 2021 में मान्यता दी थी।
यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश (ऊना और पांवटा घाटी), उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए उपयुक्त मानी गई है।
बुवाई का सही समय
डीबीडब्ल्यू 296 की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच है। किसान बुवाई से पहले खेत की अच्छी तैयारी करें। इसके लिए सिंचाई के बाद डिस्क हैरो, लेवलर और रोटावेटर से जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी समतल और भुरभुरी रहे।
अगर हाल ही में बारिश हुई है, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। प्रति हेक्टेयर 100 किलो बीज की आवश्यकता होती है और पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। बीजों को कवकनाशी (कार्बोक्सिन + थीरम) से उपचारित करना आवश्यक है।
खाद प्रबंधन और सिंचाई
इस किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर 90:60:40 किलो एनपीके की सिफारिश की गई है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और शेष आधी पहली गांठ बनने की अवस्था (लगभग 45-50 दिन बाद) में दी जानी चाहिए। सीमित सिंचाई की स्थिति में इस किस्म ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। बुवाई से पहले और 45 से 50 दिन बाद दो सिंचाई पर्याप्त मानी गई हैं।
खरपतवार नियंत्रण के उपाय
संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए किसान आईसोप्रोट्यूरॉन, क्लोडिनाफॉप, पिनोक्साडेन या फेनोक्साप्रॉप जैसे खरपतवारनाशकों का उपयोग कर सकते हैं। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2,4-डी या मेटसल्फ्यूरॉन का प्रयोग 30-35 दिन बाद करना चाहिए। बेहतर परिणाम के लिए मिट्टी में नमी का होना आवश्यक है।
रोगों से लड़ने की क्षमता
डीबीडब्ल्यू 296 किस्म पीले, झुला और काले रतुआ जैसे रोगों के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधी है। जीन परीक्षण से यह स्पष्ट हुआ है कि इसमें कई प्रभावी रतुआ रोधी जीन मौजूद हैं। फफूंदी या पाउडरी मिल्ड्यू की प्रारंभिक अवस्था में घुलनशील सल्फर 0.1% घोल का छिड़काव करना लाभकारी है।
उपज क्षमता
डीबीडब्ल्यू 296 सीमित सिंचाई की स्थिति में औसतन 56.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है, जबकि इसकी अधिकतम उपज क्षमता 83.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म अन्य लोकप्रिय किस्मों जैसे एचडी 3043 और पंजाब सिंच से बेहतर साबित हुई है।
गुणवत्ता
- गुणवत्ता की दृष्टि से, डीबीडब्ल्यू 296 बिस्किट, ब्रेड और चपाती के लिए उपयुक्त है। इसका बिस्किट स्प्रेड फैक्टर 9.5/10 और ब्रेड गुणवत्ता स्कोर 8.2 है। इसमें मजबूत ग्लूटेन और उच्च हेक्टोलिटर वजन (78.6) होने के कारण यह व्यावसायिक उपयोग के लिए भी आकर्षक विकल्प बनती है।
- डीबीडब्ल्यू 296 उन किसानों के लिए लाभदायक किस्म है जो सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में गेहूं की खेती करते हैं। यह न केवल अधिक उपज देती है, बल्कि रोगों के प्रति भी बेहतर प्रतिरोध दिखाती है और अनाज की गुणवत्ता के लिहाज से भी उच्च श्रेणी की है।