बांग्लादेश का ऐतिहासिक फैसला: दरिया-ए-नूर हीरा अब होगा जनता के सामने
बांग्लादेश सरकार का ऐतिहासिक निर्णय
International News: बांग्लादेश की सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। ढाका के सोनाली बैंक की सीलबंद तिजोरी में 117 वर्षों से रखा बेशकीमती हीरा, दरिया-ए-नूर, अब जनता के सामने लाया जाएगा। यह हीरा भारत की भूमि पर खोजा गया था और इसे कोहिनूर का बहन माना जाता है। लंबे समय से इस हीरे के बारे में रहस्य बना हुआ था, लेकिन अब पहली बार सरकार ने इसे प्रदर्शित करने का निर्णय लिया है।
नवाब सलीमुल्लाह और दरिया-ए-नूर
दरिया-ए-नूर की कहानी नवाब सलीमुल्लाह से जुड़ी हुई है। नवाब ने 14 लाख रुपये के कर्ज के बदले इस हीरे और 109 आभूषणों को सरकार के पास गिरवी रखा था। यह सौदा पूर्व बंगाल और असम सरकार के साथ हुआ था। समझौते के अनुसार, यह कर्ज 30 वर्षों में 3 प्रतिशत ब्याज पर चुकाना था, लेकिन यह कर्ज कभी चुकाया नहीं गया। इसी कारण यह हीरा सरकारी तिजोरी में बंद रहा।
आज की कीमत 1320 करोड़
117 साल पुरानी इस कर्ज की आज की कीमत लगभग 1320 से 1348 करोड़ बांग्लादेशी टका है। इतनी बड़ी राशि के कारण यह हीरा नवाब परिवार को वापस नहीं मिल सका। सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा, लेकिन इसे सार्वजनिक रूप से कभी नहीं दिखाया गया। अब, पहली बार सरकार इसे बाहर लाने जा रही है।
सीलबंद तिजोरी का रहस्य
दरिया-ए-नूर जिस तिजोरी में रखा गया था, वह कभी खोली नहीं गई। सुरक्षा अधिकारी केवल बाहर से पहरा देते रहे, लेकिन अंदर देखने की हिम्मत नहीं कर पाए। इस कारण इसके अस्तित्व पर सवाल उठते रहे। कई बार मांग उठी कि इस हीरे की असलियत सबके सामने लाई जाए। अंततः, वरिष्ठ अधिकारियों और एक ज्वेलरी विशेषज्ञ की समिति बनी और अब यह हीरा बाहर आने वाला है।
भारत की धरती से निकला
यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खदान से निकाला गया था। यह 26 कैरेट का बेशकीमती रत्न है, जिसकी सतह सपाट है। इसे महाराजा रणजीत सिंह पहनते थे। उनके पास यह हीरा और कोहिनूर दोनों थे। रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद ब्रिटिश सरकार ने इन पर कब्जा कर लिया। हालांकि, कोहिनूर ब्रिटिश ताज का हिस्सा बन गया, लेकिन दरिया-ए-नूर को वापस भेज दिया गया। बाद में, ढाका के पहले नवाब ख्वाजा अलीमुल्लाह ने 1862 की नीलामी में इसे खरीद लिया।
कोहिनूर की बहन का दर्जा
दरिया-ए-नूर को हमेशा कोहिनूर की बहन कहा गया है। इसका कारण यह है कि दोनों ही भारत की खदानों से निकले और दोनों महाराजा रणजीत सिंह की शान थे। फर्क सिर्फ इतना रहा कि कोहिनूर ब्रिटिश ताज में सज गया और दरिया-ए-नूर इतिहास के अंधेरे में खो गया। अब जब यह सामने आएगा, तो इतिहास की कई परतें खुलेंगी और दुनिया देखेगी कि भारत ने कितनी कीमती धरोहरें पैदा की थीं।
अब होगा दुनिया से सामना
बांग्लादेश सरकार की इस पहल को ऐतिहासिक माना जा रहा है। पहली बार आम जनता और दुनिया इस हीरे को देख पाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक रत्न नहीं, बल्कि भारत और बांग्लादेश की साझा विरासत है। इसे देखकर आने वाली पीढ़ियां समझेंगी कि भारत की धरती ने कैसे बेशकीमती रत्न दुनिया को दिए। दरिया-ए-नूर का बाहर आना इतिहास और संस्कृति की बड़ी जीत मानी जा रही है।