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श्रीराम के वनवास की यात्रा: 17 प्रमुख स्थानों की जानकारी

इस लेख में हम श्रीराम के वनवास के दौरान यात्रा किए गए 17 प्रमुख स्थलों की जानकारी साझा कर रहे हैं। इन स्थलों का धार्मिक महत्व और मान्यता है, जो दिवाली के समय दर्शन करने पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जानें श्रीराम ने किन-किन स्थानों पर यात्रा की और वहां क्या हुआ।
 

श्रीराम के वनवास के दौरान महत्वपूर्ण स्थल


श्रीराम के वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने 14 वर्षों में कई स्थानों का दौरा किया। इस विषय पर प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राम अवतार ने अयोध्या से रामेश्वरम तक 200 स्थानों का अध्ययन किया है। इनमें से हम आपको श्रीराम के वनवास से जुड़े 17 महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में बताएंगे, जहां आज प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। मान्यता है कि दिवाली के समय इन स्थलों के दर्शन से श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


वनवास की शुरुआत में श्रीराम ने तमसा नदी से नाव ली थी। जहां उन्होंने केवट से गंगा पार करने का अनुरोध किया, वह स्थान आज श्रृंगवेरपुर तीर्थ के नाम से जाना जाता है, जो प्रयागराज से लगभग 20-22 किलोमीटर दूर है।


गंगा पार करने के बाद श्रीराम कुरई गांव पहुंचे और फिर प्रयाग की ओर बढ़े, जिसे आज इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है। प्रयाग से यमुना पार कर श्रीराम चित्रकूट पहुंचे, जहां भरत की सेना ने उन्हें खोजा था। भरत ने यहां श्रीराम को राजा दशरथ के निधन की सूचना दी और उनकी चरण पादुका लेकर वापस अयोध्या लौट गए।


चित्रकूट के बाद श्रीराम ने मध्य प्रदेश के सतना में अत्रि ऋषि के आश्रम में विश्राम किया। इसके बाद वे दंडकारण्य के घने जंगलों में पहुंचे, जो उनके वनवास की असली शुरुआत मानी जाती है। यह विशाल जंगल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है।


महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी में श्रीराम ने अगस्त्य मुनि के आश्रम में विश्राम किया। पंचवटी एक धार्मिक स्थल है, जहां श्रीराम से जुड़े कई मंदिर हैं।


नासिक में ही श्रीराम को पहली बार शूर्पणखा ने देखा था। रावण ने माता सीता का हरण किया, जो इसी स्थान पर हुआ। हरण के बाद श्रीराम ने जटायु से मिले, जो सर्वतीर्थ के नाम से जाना जाता है। यह स्थल नासिक से 56 किलोमीटर दूर है और यहां जटायु की प्रतिमा भी स्थापित है।


माता सीता के हरण के बाद रावण ने जिस स्थान पर पुष्पक विमान रोका, वह आंध्र प्रदेश में स्थित पर्णशाला है। यहां श्रीराम-सीता से जुड़े प्राचीन मंदिर हैं।


जटायु से माता सीता के हरण की खबर मिलने के बाद श्रीराम और लक्ष्मण ने तुंगभद्रा और कावेरी नदी के क्षेत्रों में उनकी खोज की। इसके बाद वे शबरी के आश्रम में पहुंचे, जिसे आज सबरिमलय मंदिर के नाम से जाना जाता है।


माता सीता की खोज में श्रीराम और लक्ष्मण की हनुमान और सुग्रीव से भेंट हुई, जो ऋष्यमूक पर्वत पर हुई। यह पर्वत वानर सेना की नगरी किष्किन्धा के पास स्थित है।


हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने बालि के राज्य में जाकर सुग्रीव की मदद की। बदले में सुग्रीव ने श्रीराम को अपनी वानर सेना सौंपी, जो माता सीता की खोज में मदद कर सकती थी।


वानर सेना को एकत्रित कर श्रीराम ने माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाने की योजना बनाई, जो कोडीकरई के नाम से जानी जाती है। यह तमिलनाडु की 1,000 किमी लंबी तटरेखा पर स्थित है।


यहां से श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और पूरी वानर सेना रामेश्वरम पहुंची। यहां श्रीराम ने भगवान शिव की पूजा की। इसके बाद उन्हें धनुषकोडी के बारे में पता चला, जो रामेश्वरम के समुद्री तट पर स्थित एक छोटा सा गांव है।


धनुषकोडी पहुंचकर नल और नील के साथ श्रीराम ने एक विशाल पुल बनाने की योजना बनाई। पुल पार कर श्रीराम, लक्ष्मण और पूरी वानर सेना नुवारा एलिया की पर्वत श्रृंखला में दाखिल हुई, जहां आज भी रावण और विभीषण से जुड़ी ऐतिहासिक इमारतें और गुफाएं हैं।