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उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ: कारण और प्रभाव

उत्तराखंड में हाल ही में बादल फटने की घटनाएँ हुई हैं, जिससे कई घर बह गए और किसानों को भारी नुकसान हुआ। इस लेख में हम बादल फटने की प्रक्रिया, इसके कारण और इसके प्रभावों के बारे में विस्तार से जानेंगे। जानें कि ये घटनाएँ क्यों होती हैं और उनका क्या असर होता है।
 

उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ

उत्तराखंड में बादल फटना: बारिश के मौसम में कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ देखने को मिलती हैं, जैसे बाढ़, भूस्खलन और बादल फटना। इन घटनाओं से व्यापक नुकसान होता है, जिसमें घरों का नष्ट होना और किसानों को भारी क्षति शामिल है। हाल ही में उत्तरकाशी में बादल फटने से कई घर बह गए, जिससे काफी नुकसान हुआ। बादल फटने के कारणों को समझना आवश्यक है। पहले भी इस प्रकार की घटनाएँ सामने आ चुकी हैं।


बादल फटने की प्रक्रिया

बादल कब फटते हैं?

बादल फटने की घटना में अचानक भारी बारिश होती है, जो कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक चल सकती है। मानसून के दौरान और लगातार बारिश वाले क्षेत्रों में यह घटना आम है। यह तब होती है जब वातावरण में नमी और गर्मी का स्तर अधिक होता है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में यह घटना अक्सर देखी जाती है। बादल आमतौर पर दोपहर या रात में फटते हैं।


बादल फटने के कारण

बादल क्यों फटते हैं?

बादल फटने की प्रक्रिया विज्ञान से जुड़ी है। जब गर्म हवा नमी से भरे बादल को ऊपर की ओर ले जाती है, तो ठंडी हवा के संपर्क में आने पर जलवाष्प तेजी से पानी की बूंदों में बदल जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में हवा की गति के कारण यह प्रक्रिया तेज होती है। मानसून के दौरान, कम दबाव वाले क्षेत्रों में गर्म और नम हवा तेजी से ऊपर उठती है, जिससे बादल फटने की घटनाएँ होती हैं। जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान भी इस प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।


क्यूम्यलोनिम्बस बादल

क्यूम्यलोनिम्बस बादल क्या होते हैं?

बादल फटने की घटना में जो बादल दिखाई देते हैं, उन्हें क्यूम्यलोनिम्बस बादल कहा जाता है। ये बादल तब बनते हैं जब पानी की छोटी-छोटी बूंदें आपस में टकराकर बड़ी बूंदों में बदल जाती हैं। इसे लैंगमुइर वर्षा प्रक्रिया कहा जाता है, जिसमें बड़ी बूंदें धीरे-धीरे गिरती हैं और छोटी बूंदों में परिवर्तित होती हैं।