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कर्नाटक में जातिगत जनगणना की प्रक्रिया शुरू, विवादों के बीच सर्वेक्षण

कर्नाटक में जातिगत जनगणना की प्रक्रिया आज से शुरू हो गई है, जिसमें लगभग 1.75 लाख गणनाकर्मी शामिल हैं। यह सर्वे 7 अक्टूबर तक चलेगा और इसमें 2 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा। सर्वेक्षण की लागत 420 करोड़ रुपये है और इसमें कई विवाद भी उठ रहे हैं। वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदायों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। जानें इस सर्वेक्षण के पीछे की राजनीति और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

जातिगत जनगणना की शुरुआत

Karnataka Caste Census: कर्नाटक में आज से जातिगत जनगणना का कार्य प्रारंभ हो गया है। यह सर्वे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसके संबंध में कई विवाद और चर्चाएं उठ रही हैं। यह प्रक्रिया 7 अक्टूबर तक चलेगी और इसमें लगभग 1.75 लाख गणनाकर्मी शामिल होंगे, जिनमें अधिकांश सरकारी स्कूलों के शिक्षक हैं। यह सर्वे राज्य के लगभग 2 करोड़ घरों में 7 करोड़ लोगों को कवर करेगा।


सर्वे की लागत और प्रक्रिया

इस सर्वे की कुल लागत लगभग 420 करोड़ रुपये है। इसमें 60 प्रश्नों का एक प्रश्नावली तैयार किया गया है। प्रत्येक घर को बिजली मीटर नंबर के आधार पर एक यूनिक हाउसहोल्ड आईडी दी जाएगी, और आधार व राशन कार्ड को मोबाइल नंबर से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही, हर घर का जियो-टैग भी किया जाएगा।


बेंगलुरु में प्रशिक्षण में देरी

बेंगलुरु में प्रशिक्षण और तैयारियों के कारण सर्वेक्षण में एक-दो दिन की देरी हो सकती है। नागरिक इस सर्वे में ऑनलाइन भी भाग ले सकते हैं, और शिकायतों के लिए हेल्पलाइन नंबर 8050770004 जारी किया गया है। इस सर्वे को लेकर कई समुदायों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वोक्कालिगा समुदाय ने अपने अनुयायियों से कहा है कि वे धर्म के रूप में 'हिंदू' और जाति के रूप में केवल 'वोक्कालिगा' दर्ज करें। वहीं, वीरशैव-लिंगायत समुदाय के नेताओं ने अपने लोगों को विवेक से निर्णय लेने की सलाह दी है। कुछ वर्ग वीरशैव-लिंगायत को धर्म के रूप में दर्ज करने की बात कर रहे हैं।


कैबिनेट ने नए सर्वे को मंजूरी दी

पिछली बार 2015 में हुए सामाजिक और शैक्षिक सर्वे पर 165 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया था। इस बार जून 2025 में कैबिनेट ने नए सर्वे को मंजूरी दी थी। यह निर्णय कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1995 की धारा 11(1) के तहत लिया गया, जिसमें हर 10 साल में सूची का पुनरीक्षण अनिवार्य है।


सर्वे को लेकर विवाद

सर्वे को लेकर विवाद भी कम नहीं हैं। भाजपा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार इस सर्वे को जल्दबाजी में कर रही है और इसका उद्देश्य हिंदुओं को बांटना है। वहीं, कांग्रेस के भीतर भी कुछ नेताओं ने जातियों की सूची में 'दोहरे नामों' पर सवाल उठाए। आयोग ने स्पष्ट किया है कि ये नाम केवल ड्रॉप-डाउन सूची के लिए हैं और उन्हें सार्वजनिक तौर पर मान्यता नहीं है।


फेस रिकग्निशन आधारित ऐप का उपयोग

आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर. नाइक ने कहा कि जिन जातियों के नाम विवादित हैं, उन्हें 'मास्क' कर दिया गया है, लेकिन कोई भी नागरिक अपनी इच्छा से उन्हें दर्ज करा सकता है। उन्होंने बताया कि इस बार फेस रिकग्निशन आधारित ऐप का उपयोग किया जाएगा, जिससे आधार प्रमाणीकरण से जुड़ी दिक्कतें कम होंगी। यह सर्वे राज्य की राजनीति और सामाजिक संतुलन पर गहरा असर डाल सकता है। वोक्कालिगा, लिंगायत, कुरुबा, मुस्लिम, अनुसूचित जाति और अन्य समुदाय इस बार अपनी संख्या दर्ज कर अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति बना रहे हैं।