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पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की नई संभावनाएँ: लेफ्ट का पतन

पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है, जहां कांग्रेस की संभावनाएँ बढ़ रही हैं और लेफ्ट का प्रभाव घटता जा रहा है। ममता बनर्जी के शासन के दौरान, कांग्रेस ने एक बार फिर से मुख्य विपक्षी पार्टी बनने की कोशिश की है। दलित और मुस्लिम समुदायों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हो रही है, और हाल ही में मतुआ समाज के लोगों ने राहुल गांधी से मुलाकात की। जानें कैसे ये घटनाएँ बंगाल की राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकती हैं।
 

पश्चिम बंगाल की राजनीतिक स्थिति

पश्चिम बंगाल एक समय कम्युनिस्ट राजनीति का गढ़ हुआ करता था। लगभग 35 वर्षों तक कम्युनिस्ट पार्टियों ने यहां शासन किया, और अब ममता बनर्जी पिछले 15 वर्षों से इसी राजनीतिक ढांचे पर राज्य का नेतृत्व कर रही हैं। इस अवधि में, लेफ्ट का प्रभाव पूरी तरह से समाप्त हो गया है। न तो कोई सांसद जीत रहा है और न ही विधायक। इसके अलावा, राज्य में कोई भी प्रमुख नेता नजर नहीं आ रहा है। पुरानी नेतृत्व की समाप्ति हो चुकी है और नया नेतृत्व उभरने में असफल रहा है। इस स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि लेफ्ट की राजनीतिक शक्ति घट रही है, और कांग्रेस अब उभरने की स्थिति में है।


कांग्रेस की संभावनाएँ

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच एक राजनीतिक स्थान है, जिसे भाजपा अपने पक्ष में कर सकती है। ममता के शासन के दौरान, कांग्रेस एक बार मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी है। कांग्रेस के उभरने की संभावना इस तथ्य से भी है कि देशभर में दलित और मुस्लिम समुदायों में उसकी स्थिति मजबूत हो रही है। हाल ही में, मतुआ समाज के दलित समुदाय के लोग राहुल गांधी से मिलने बिहार गए और उन्हें बंगाल आने का निमंत्रण दिया, जो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत है। इस बीच, सीपीएम के पूर्व अर्थशास्त्री प्रसेनजीत बोस के कांग्रेस में शामिल होने की भी खबरें हैं। जानकारों का मानना है कि जो लोग ममता बनर्जी की राजनीति से असंतुष्ट हैं और भाजपा को बंगाल में रोकना चाहते हैं, उनकी पसंद अब कांग्रेस बनती जा रही है। पहले कांग्रेस लेफ्ट के पीछे चलती थी, लेकिन संभव है कि अगले चुनाव में कांग्रेस आगे बढ़े और लेफ्ट उसके पीछे रह जाए।