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मुहम्मद की छवि और इस्लाम का वास्तविकता: एक विश्लेषण

इस लेख में मुहम्मद की छवि और इस्लाम के वास्तविकता पर गहन चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि कैसे अधिकांश मुसलमान मुहम्मद को पूरी तरह से नहीं जानते और उनके जीवन की कई बातें सामान्य नैतिकता के खिलाफ लगती हैं। लेख में यह भी बताया गया है कि मुहम्मद के बाद कई अन्य प्रोफेट हुए हैं और इस्लाम में कई नकारात्मक पहलुओं की चर्चा की गई है। यह ज्ञान और प्रेम का सही मार्ग है, जो सभी को मुहम्मद और अन्य महान व्यक्तियों के जीवन को समझने के लिए प्रेरित करता है।
 

मुहम्मद का ज्ञान और अनुकरणीयता

कई मुसलमान मुहम्मद के जीवन को पूरी तरह से नहीं समझते। जब उन्हें हर विषय में अनुकरणीय बताया जाता है, तो उनके जीवन की संपूर्ण जानकारी लेना आवश्यक हो जाता है। अन्यथा अनुकरण कैसे संभव होगा?


मुहम्मद से मुहब्बत? पहले उन्हें जानें (2)


इस्लाम का मूल स्वरूप गैर-मुस्लिमों के प्रति विरोध पर आधारित है। काफिरों के खिलाफ यह एक स्पष्ट दृष्टिकोण है। इस्लाम का उद्देश्य पूरी दुनिया को इस्लामी बनाना है, जिसका अर्थ है सभी गैर-इस्लामी तत्वों का नाश करना। इसलिए, जहां मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों होते हैं, वहां शांति हमेशा अस्थायी रहती है।


एक प्रमुख भारतीय मौलाना ने कहा था कि यदि किसी विषय में संदेह हो, तो काफिरों के विपरीत कार्य करें। मुहम्मद ने मुसलमानों को कहा था: "मूँछें मुड़वा लो और दाढ़ी बढ़ा लो; ताकि मूर्तिपूजकों से अलग दिखो।" (बुखारी, 7:72:780)। यही कारण है कि कुरान में काफिरों के लिए नकारात्मक शब्दों की भरमार है।


मुहम्मद को पूरी मानवता के लिए अनुकरणीय और अंतिम प्रोफेट माना जाता है। यह कुरान का केंद्रीय दावा है (कुरान, 33:40)। इस्लाम की धारणा के अनुसार, दुनिया का अंत निकट है, जो कुरान में बार-बार उल्लेखित है (कुरान, 15:85, 44:10, 78:40)।


हालांकि, यह दावा गलत साबित हुआ। मुहम्मद के कथन के बाद से दुनिया चौदह सदियों से चल रही है। यदि अंत निकट था, तो यह चेतावनी उस समय के लोगों के लिए थी, न कि हजारों साल बाद। इसलिए, मुहम्मद का अंतिम प्रोफेट होना भी संदिग्ध है।


इतिहास ने भी यह सिद्ध किया है कि प्रोफेट की धारणा न केवल इस्लाम से शुरू हुई, बल्कि इसके बाद भी कई अन्य प्रोफेट हुए। जैसे, रूस में संत बोरिस, भारत में आदि शंकर, गुरु रामानंद, गुरु नानक, चैतन्य, आदि। मुहम्मद के अनुयायियों की संख्या उनकी मृत्यु के समय एक लाख थी, जबकि अन्य प्रोफेटों के अनुयायी कई गुना अधिक थे।


अधिकांश मुसलमान मुहम्मद को पूरी तरह से नहीं जानते, विशेषकर गैर-अरब मुसलमान। इस्लामी पुस्तकों के अनुवाद में कई बातें नरम और अर्थांतरित की गई हैं। भारतीय मौलानाओं ने भी कई मनगढ़ंत बातें बताई हैं।


इसलिए, मुहम्मद को अनुकरणीय बताने में उनके जीवन की कई बातें समस्या बन जाती हैं। उनकी जीवनी की जिन बातों पर मुसलमान गर्व करते हैं, वे सामान्य नैतिकता के खिलाफ लगती हैं।


इस्लामी किताबें मुहम्मद की बड़ाई में युद्ध, हमले, जीत, लूट, और भोग की चर्चा करती हैं। यह किसी ज्ञानी के बजाय एक योद्धा और शासक की जीवनी है।


विचारशील मुसलमान भी समझते हैं कि ऐसे प्रोफेट को पूरी मानवता के लिए अनुकरणीय बताना अजीब है। इसलिए मुस्लिम नेता और उलेमा मुहम्मद की चर्चा से बचते हैं। लेकिन 'आई लव मुहम्मद' ने इस चर्चा को अनिवार्य बना दिया है।


इसलिए, मुहम्मद के बारे में सच्चा ज्ञान होना आवश्यक है।


मुहम्मद को अपने समय की दुनिया की भी पूरी जानकारी नहीं थी। कुरान की कथाएं यहूदी बाइबिल की बातें हैं। जबकि मुहम्मद के समय भारत, चीन, आदि में बड़े-बड़े बौद्ध और हिन्दू राज्य थे।


इसलिए, मुहम्मद के प्रोफेट होने का दावा संदिग्ध था। कुरान में कई संकेत हैं जो इस बात को दर्शाते हैं।


इस्लाम में गुलामी-प्रथा, स्त्रियों के प्रति नीच व्यवहार, और अन्य नकारात्मक बातें भी हैं। मौलाना अब इन बातों को नए अर्थ देने की कोशिश कर रहे हैं।


मुहम्मद के बाद भारत में अनेक महान धर्म-चिंतक हुए हैं, जैसे आदि शंकराचार्य, चैतन्य, स्वामी विवेकानंद, आदि। उनके जीवन में घमंड, धमकी, या प्रलोभन नहीं थे।


इसलिए, जो मुहम्मद से प्रेम करते हैं, उन्हें अन्य प्रोफेटों और ज्ञानियों के जीवन का भी अध्ययन करना चाहिए। यह ज्ञान और प्रेम का सही मार्ग है।