वर्ल्ड स्पाइनल कॉर्ड इंजरी डे: नई तकनीक और प्रेरणादायक कहानियाँ
वर्ल्ड स्पाइनल कॉर्ड इंजरी डे का महत्व
PGI-CSIR, वर्ल्ड स्पाइनल कॉर्ड इंजरी डे, चंडीगढ़ : हर वर्ष 5 सितंबर को वर्ल्ड स्पाइनल कॉर्ड इंजरी डे मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम है- 'फॉल प्रिवेंशन, स्पाइनल कॉर्ड प्रोटेक्शन', जिसका अर्थ है गिरने से बचाव और रीढ़ की हड्डी की सुरक्षा। चंडीगढ़ के पीजीआई और सीएसआईओ मिलकर एक विशेष व्हीलचेयर विकसित कर रहे हैं, जो चेहरे की हरकतों से संचालित होगी। इससे दिव्यांग व्यक्तियों को नई स्वतंत्रता मिलेगी।
व्हीलचेयर का क्लीनिकल ट्रायल
पीजीआई के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन के विशेषज्ञ डॉ. सौम्या ने बताया कि इस व्हीलचेयर का क्लीनिकल ट्रायल जल्द ही पीजीआई में शुरू होगा। उनका कहना है कि स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का मतलब जीवन का अंत नहीं है। सहायक उपकरणों और मनोवैज्ञानिक-सामाजिक समर्थन से लोग फिर से सामान्य जीवन जी सकते हैं। आइए, जानते हैं दो प्रेरणादायक कहानियाँ, जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दिखाया कि जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है।
ठोड़ी से व्हीलचेयर चलाकर जीते मेडल
33 वर्षीय अजेय राज की कहानी प्रेरणादायक है। 2006 में झारखंड में एक बाइक दुर्घटना में उनकी गर्दन की चौथी हड्डी टूट गई, जिससे उनका शरीर गर्दन के नीचे से पैरालाइज्ड हो गया। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में सर्जरी के बाद भी उन्हें पूरी तरह ठीक होने का कोई इलाज नहीं मिला। 2017 में चंडीगढ़ स्पाइनल रीहैब सेंटर पहुंचने पर उन्हें मोटराइज्ड व्हीलचेयर मिली।
अजेय की उपलब्धियाँ
पहले बिस्तर से उठना मुश्किल था, लेकिन अब अजेय अपनी ठोड़ी से व्हीलचेयर चलाते हैं। उन्होंने बोशिया गेम में भाग लिया और 2017 से अब तक बहरीन और कजाकिस्तान में दो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी उनके नाम 8 मेडल हैं। अजेय का कहना है, “चाहे कुछ भी हो, अपनी काबिलियत पहचानें, रास्ता जरूर मिलेगा।”
मैराथन रनर से व्हीलचेयर चैंपियन तक
27 वर्षीय गरिमा की कहानी भी प्रेरणादायक है। इंजरी से पहले वह मैराथन रनर थीं, लेकिन 2018 में एक हादसे में उनकी रीढ़ की हड्डी को गंभीर चोट लगी। कई सर्जरियों और लंबे बेड रेस्ट के बाद भी वह चल नहीं सकीं। पीजीआई के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन डिपार्टमेंट में तीन साल के इलाज ने उनकी जिंदगी बदल दी। गरिमा ने व्हीलचेयर स्पोर्ट्स को अपनाया और आज वह जैवलिन और डिस्कस थ्रो में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुकी हैं। उनकी कहानी बताती है कि हालात बदल सकते हैं, लेकिन जीतने की आदत नहीं बदलती।