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सावन सोमवार: उत्तर और दक्षिण भारत में तिथियों का अंतर

सावन का महीना भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, खासकर सावन सोमवार। यह जानना दिलचस्प है कि उत्तर और दक्षिण भारत में सावन सोमवार की तिथियां अलग-अलग होती हैं। उत्तर भारत में पूर्णिमांत पंचांग का पालन होता है, जबकि दक्षिण भारत में अमांत पंचांग का। इस लेख में हम 2025 में सावन सोमवार की तिथियों और पूजा विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। जानें कैसे भक्त इस दिन भगवान शिव की आराधना करते हैं और सावन का महीना क्यों महत्वपूर्ण है।
 

सावन का पावन महीना

भोलेनाथ के भक्तों के लिए सावन (श्रावण) का महीना एक विशेष महत्व रखता है। यह भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित होता है और इसे बेहद शुभ माना जाता है, विशेषकर सावन सोमवार। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तर और दक्षिण भारत में सावन सोमवार की तिथियों में भिन्नता होती है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।


भारत में चंद्र पंचांग और सौर पंचांग के अनुसार तिथियों में भिन्नता होती है।


उत्तर भारत में, जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, और छत्तीसगढ़ में पूर्णिमांत पंचांग का पालन किया जाता है। यहाँ सावन का महीना पूर्णिमा से शुरू होकर अगली पूर्णिमा तक चलता है। इसलिए, सावन सोमवार की तिथियां इसी आधार पर निर्धारित होती हैं।


दक्षिण भारत में, जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ हिस्सों में अमांत पंचांग का पालन होता है। यहाँ सावन का महीना अमावस्या से शुरू होकर अगली अमावस्या तक चलता है। इस कारण, सावन की शुरुआत और सावन सोमवार की तिथियां उत्तर भारत से भिन्न होती हैं।


2025 में सावन सोमवार की तिथियां:


उत्तर भारत के लिए: 14 जुलाई 2025: पहला श्रावण सोमवार व्रत, 21 जुलाई 2025: दूसरा श्रावण सोमवार व्रत, 28 जुलाई 2025: तीसरा श्रावण सोमवार व्रत, 4 अगस्त 2025: चौथा और अंतिम श्रावण सोमवार व्रत।


दक्षिण भारत में सावन: 28 जुलाई 2025: पहला श्रावण सोमवार व्रत, 4 अगस्त 2025: दूसरा श्रावण सोमवार व्रत, 11 अगस्त 2025: तीसरा श्रावण सोमवार व्रत, 18 अगस्त 2025: चौथा और अंतिम श्रावण सोमवार व्रत।


सावन सोमवार का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। भक्त इस दिन शिव मंदिरों में जल अभिषेक, बेलपत्र, धतूरा और दूध चढ़ाकर पूजा करते हैं। अविवाहित महिलाएं अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं, जबकि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और घर में सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। यह महीना प्रकृति की हरियाली और भगवान शिव के आशीर्वाद का प्रतीक है।