Chandra Grahan 2025: क्या श्राद्ध कर्म पर पड़ेगा ग्रहण का असर?
Chandra Grahan 2025: विशेष महत्व का खग्रास चंद्रग्रहण
Chandra Grahan 2025: इस वर्ष का अंतिम और सबसे लंबा खग्रास चंद्रग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा के दिन, रविवार रात को होने वाला है। ज्योतिष के अनुसार, यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए पूर्णिमा श्राद्ध का आयोजन किया जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ग्रहण और सूतक काल का श्राद्ध कर्म पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
ग्रहण का श्राद्ध कर्म पर प्रभाव
काशी के विद्वानों का कहना है कि चंद्रग्रहण या सूतक काल का श्राद्ध कर्म पर कोई असर नहीं होता। पितरों के तर्पण और पूजा-अर्चना का विधान पूर्ववत चलता है। इसका मतलब है कि ग्रहण के दौरान भी श्राद्ध कर्म करने में कोई बाधा नहीं है।
श्राद्ध कर्म और ग्रहण का संबंध
श्रीकाशी के विद्वानों के अनुसार, चंद्रग्रहण या उसके सूतक का प्रभाव पितृ पक्ष या श्राद्ध कर्म पर नहीं होता। इस बार खग्रास चंद्रग्रहण हो रहा है, जो पूर्ण चंद्रग्रहण से भी बड़ा होता है। इसमें चंद्रमा पूरी तरह से आच्छादित हो जाता है और आकाश का कुछ हिस्सा भी ढक जाता है। यही कारण है कि इसे खग्रास चंद्रग्रहण कहा जाता है, और इस दौरान चंद्रमा रक्तवर्ण यानी लाल रंग का दिखाई देता है।
सूतक और श्राद्ध
विद्वानों का कहना है कि सूतक या ग्रहण काल में श्राद्ध कर्म का निषेध नहीं है। सूतक इस बार दोपहर 12:57 बजे से शुरू होगा, जबकि श्राद्ध कर्म पूर्वाह्न में ही किया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि कभी ग्रहण या सूतक पूर्वाह्नव्यापिनी भी हो, तो भी इसका श्राद्ध कर्म पर कोई असर नहीं होता।
ग्रहण का समय
ग्रहण स्पर्श: रात 9:57 बजे
ग्रहण का मध्यकाल: रात 11:49 बजे
ग्रहण मोक्ष: रात 1:27 बजे
भोजन और सूतक नियम
पंडितों के अनुसार, सूतक लगने से पहले भोजन कर लेना चाहिए। ग्रहण काल में बना हुआ भोजन अशुद्ध और दूषित माना जाता है। हालांकि, बालक, वृद्ध और रोगी पर सूतक और भोजन निषेध लागू नहीं होता। ग्रहण काल में घी या दूध से बने पदार्थों में तुलसी दल या कुश डाल देने से वह भोजन दूषित नहीं माना जाता।
पूजा-पाठ और देव विग्रह
सूतक लगने से पहले ही घर और मंदिरों में पूजा-अर्चना कर देनी चाहिए और देव विग्रहों को पर्दे से ढक देना चाहिए। ग्रहण मोक्ष के बाद स्नान करके शुद्ध होकर पूजा स्थल की सफाई करनी चाहिए। इसके बाद देवताओं को स्नान कराकर उनके वस्त्र और आभूषण बदलें, तत्पश्चात पुनः पूजन-अर्चन और दान-पुण्य करना चाहिए।
ध्यान दें
DISCLAIMER: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है। JBT इसकी किसी भी प्रकार से पुष्टि नहीं करता है।