G7 और यूरोपीय संघ का रूस के तेल व्यापार पर बड़ा प्रहार
रूस के तेल व्यापार पर प्रतिबंध की तैयारी
नई दिल्ली: दुनिया के सबसे अमीर लोकतंत्रों का समूह, जी-7 और यूरोपीय संघ, रूस के तेल व्यापार पर एक निर्णायक प्रहार करने की योजना बना रहे हैं। पश्चिमी देश समुद्री सेवाओं पर रूसी कच्चे तेल के लिए पूर्ण प्रतिबंध लगाने का विचार कर रहे हैं। यह कदम पश्चिमी जहाजों और बीमा कंपनियों के लिए रूस के साथ व्यापार करना लगभग असंभव बना देगा, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार, इस निर्णय का सीधा असर ग्रीस, साइप्रस और माल्टा जैसे देशों के जहाजों पर पड़ेगा, जो अभी भी रूसी तेल का निर्यात कर रहे हैं।
इस नए प्रतिबंध के लागू होने पर मौजूदा 'प्राइस लिमिट सिस्टम' समाप्त हो जाएगा। इसका उद्देश्य रूस द्वारा पश्चिमी स्वामित्व वाले टैंकरों के माध्यम से होने वाले लाभकारी समुद्री व्यापार को पूरी तरह से समाप्त करना है। उल्लेखनीय है कि रूस अभी भी अपने एक तिहाई से अधिक तेल की आपूर्ति पश्चिमी जहाजों और सेवाओं के माध्यम से करता है, जिसमें से अधिकांश भारत और चीन को भेजा जाता है। इन मार्गों के बंद होने से रूस को अपने पुराने और खस्ताहाल 'शैडो फ्लीट' पर निर्भर होना पड़ेगा। यह 'शैडो फ्लीट' उन टैंकरों का नेटवर्क है जो प्रतिबंधों से बचने के लिए गुप्त रूप से काम करते हैं और जिनकी निगरानी करना कठिन है।
इस प्रस्ताव को यूरोपीय संघ के अगले प्रतिबंध पैकेज में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है, जो 2026 की शुरुआत में आने की संभावना है। ब्रुसेल्स इस निर्णय को औपचारिक रूप देने से पहले जी-7 की सहमति का इंतजार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारी जी-7 की बैठकों में इस मुद्दे को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि, इस मामले में अंतिम अमेरिकी रुख राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन की रणनीति पर निर्भर करेगा। ट्रंप फिलहाल यूक्रेन-रूस शांति वार्ता में मध्यस्थता कर रहे हैं और उन्होंने पहले प्राइस लिमिट सिस्टम को और सख्त करने में कम रुचि दिखाई थी, इसलिए उनका निर्णय महत्वपूर्ण होगा। यदि यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है, तो यह 2022 में यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से रूसी तेल पर जी-7 और यूरोपीय संघ द्वारा की गई सबसे कठोर कार्रवाई होगी।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में रूस ने अपने तेल का 38 प्रतिशत हिस्सा जी-7 और यूरोपीय संघ की कंपनियों से जुड़े टैंकरों के माध्यम से निर्यात किया था। वहीं, प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस, ईरान और वेनेजुएला द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले 'शैडो फ्लीट' में अब 1,423 टैंकर शामिल हो चुके हैं। पश्चिमी सरकारों का तर्क है कि इस कदम का उद्देश्य तेल बाजार में स्थिरता बनाए रखते हुए क्रेमलिन के युद्ध राजस्व को कम करना है। यदि यह पूर्ण समुद्री प्रतिबंध लागू होता है, तो रूस के पास अपने अवैध बेड़े का विस्तार करने या तेल निर्यात में भारी कटौती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।