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आंवला नवमी: लक्ष्मी जी की पूजा और कथा का महत्व

आंवला नवमी, जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है, इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से भक्त को दरिद्रता से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस लेख में आंवला नवमी की पूजा विधि, कथा और इसके महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जानें कैसे इस दिन की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि लाई जा सकती है।
 

घर में दरिद्रता का नाश और मोक्ष की प्राप्ति


Amla Navami Katha, नई दिल्ली: कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा का महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, आंवले के नीचे की गई पूजा का फल हजार यज्ञों के बराबर होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष में निवास करते हैं। जो भक्त इस वृक्ष की श्रद्धा से पूजा करता है, उसे स्वास्थ्य, संतान, सौभाग्य और दीर्घायु का वरदान मिलता है।


आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन का महत्व

कहा जाता है कि आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से सभी रोग और पाप समाप्त हो जाते हैं। इस वर्ष आंवला नवमी की पूजा 31 अक्टूबर को होगी। पूजा का शुभ समय 31 अक्टूबर को सुबह 06:32 से 10:03 बजे तक है, जो कि 3 घंटे 31 मिनट का है। इस दौरान आंवले की कथा का पाठ करना आवश्यक है।


आंवला नवमी की कथा

एक समय की बात है, माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण पर निकलीं। उनके मन में विचार आया कि वे भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा एक साथ करें, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव होगा। ध्यान करते हुए लक्ष्मी जी ने पाया कि आंवले का वृक्ष ही ऐसा स्थान है जहां तुलसी की पवित्रता और बेल के गुण मिलते हैं। उन्होंने आंवले के वृक्ष की पूजा करने का निश्चय किया।


माता लक्ष्मी ने विधिपूर्वक आंवले के वृक्ष की पूजा की, जल अर्पित किया, दीप जलाया और भगवान विष्णु तथा शिव का ध्यान किया। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर दोनों देवता प्रकट हुए और देवी लक्ष्मी को आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा, उसके जीवन में दरिद्रता नहीं आएगी और उसे मोक्ष प्राप्त होगा।


इसके बाद माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन तैयार किया और भगवान विष्णु तथा भगवान शिव को अर्पित किया। दोनों देवताओं ने प्रसाद स्वीकार किया और माता लक्ष्मी ने भी वही भोजन ग्रहण किया। इसी दिन से आंवला नवमी व्रत और पूजा की परंपरा शुरू हुई।


आंवला वृक्ष की पूजा विधि


  • सुबह उठकर स्नान करें और पीले वस्त्र पहनें।

  • किसी पवित्र स्थान या घर के आंगन में आंवले का वृक्ष सजाएं।

  • वृक्ष के चारों ओर जल, हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाएं।

  • आंवले के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं और विष्णु जी की आरती करें।

  • आंवले के वृक्ष की परिक्रमा करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

  • परिवार के साथ वृक्ष के नीचे भोजन ग्रहण करें। इसे आंवला भोजन कहा जाता है।