उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता खतरा: एक गंभीर चिंता
उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और चुनौतियाँ
उत्तराखंड को 'देवभूमि' के नाम से जाना जाता है, और इसकी प्राकृतिक सुंदरता, जैसे वादियाँ, झरने और बर्फीली चोटियाँ, सदियों से लोगों को आकर्षित करती आई हैं। यहां की शांति और सौंदर्य में खो जाने की चाह रखने वाले सैलानी और साधु दोनों ही आते हैं। लेकिन अब यह धरती बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारण चिंता का विषय बन गई है।प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव स्थानीय निवासियों पर गहरा पड़ता है। हर साल बाढ़, भूस्खलन, जंगलों में आग और ग्लेशियर के टूटने जैसी घटनाएँ आम हो गई हैं, जिससे लोगों का जीवन कठिन हो गया है। खेती प्रभावित होती है, सड़कों का टूटना सामान्य हो गया है, और परिवार उजड़ रहे हैं। स्थानीय लोग हर मौसम में अगली आपदा की चिंता में रहते हैं।
हालांकि, यह मान लेना कि सभी समस्याएँ केवल प्रकृति के कारण हैं, आधा सच है। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड की स्थिति मानव लापरवाही और प्राकृतिक कारणों का मिश्रण है। हिमालय क्षेत्र भूगर्भीय रूप से सक्रिय है, जिससे भूकंप और भूस्खलन का खतरा बढ़ता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी अब पहाड़ों में स्पष्ट हो रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय में औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे हवा में नमी की मात्रा बढ़ती है। जब यह नमी अचानक बरसती है, तो यह बादल फटने जैसी घटनाओं का कारण बनती है। 2018 के बाद से ऐसी घटनाओं में वृद्धि देखी गई है।
उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए तेजी से हो रहे निर्माण कार्य भी खतरे को बढ़ा रहे हैं। पहाड़ों को काटकर बनाई जा रही सड़कों और जलविद्युत परियोजनाओं ने पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाया है। हर साल लाखों पर्यटकों के आने से संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, जिससे कचरा फैलता है और प्राकृतिक जल स्रोतों पर बोझ बढ़ता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्टों में पहले ही चेतावनी दी गई है कि छोटे समय में तेज बारिश (mini cloudbursts) अब अधिक देखने को मिल रही हैं। इनका प्रभाव ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विनाशकारी हो सकता है।