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कार्पल टनल सिंड्रोम से बचने के लिए आवश्यक टिप्स

कार्पल टनल सिंड्रोम एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, खासकर डिजिटल वर्कर्स के लिए। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि कैसे सही उपकरण, उचित पोश्चर और नियमित ब्रेक लेकर आप इस समस्या से बच सकते हैं। जानें कि टाइपिंग की तकनीक और पेन-ग्रिप भी आपकी नसों की सेहत पर कैसे असर डालते हैं। सही जानकारी और उपायों के साथ, आप लंबे समय तक दर्द से राहत पा सकते हैं।
 

कार्पल टनल सिंड्रोम: एक बढ़ती हुई समस्या

2025 के करीब, वर्क-फ्रॉम-होम कल्चर अपने चरम पर है। चाहे ऑफिस हो या घर, कीबोर्ड और माउस पर झुके हाथ अब थकान से आगे बढ़कर नसों पर दबाव डाल रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि कलाई की कार्पल टनल में बढ़ा दबाव मीडियन नस को प्रभावित कर सकता है, जिससे दर्द, सुन्नपन और पकड़ कमजोर होने जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।


डिजिटल वर्कर्स की बढ़ती संख्या

भारत में डिजिटल वर्कर्स की संख्या करोड़ों में है, और इसी अनुपात में हाथ और कलाई की समस्याएं भी बढ़ रही हैं। फिजियोथेरेपिस्ट और ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि समय रहते आदतों में सुधार नहीं किया गया, तो यह समस्या गंभीर हो सकती है। अच्छी बात यह है कि सही तकनीक और सतर्कता से इसे काफी हद तक रोका जा सकता है।


गलत उपकरणों का उपयोग

लैपटॉप पर काम करने वाले अक्सर साधारण माउस और बिना सपोर्ट वाले कीबोर्ड का उपयोग करते हैं, जिससे कलाई पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। एर्गोनोमिक डिजाइन वाले माउस नसों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने में मदद कर सकते हैं। फिजियो विशेषज्ञों का कहना है कि माउस पकड़ते समय कलाई को हवा में लटकने से बचाना और टेबल की सतह पर उसका भार न डालना बहुत महत्वपूर्ण है। सही उपकरण न केवल आराम देते हैं, बल्कि नसों की सुरक्षा भी करते हैं।


झुका हुआ पोश्चर और उसके प्रभाव

स्क्रीन पर झुककर काम करना केवल पीठ और गर्दन को ही नहीं, बल्कि कलाई की टनल से गुजरने वाली नस को भी प्रभावित करता है। झुके पोश्चर से मांसपेशियों में खिंचाव और टिशू में सूजन की संभावना बढ़ जाती है। काम करते समय गर्दन को सीधा, कोहनी को 90 डिग्री और कलाई को न्यूट्रल पोजीशन में रखना रिस्क को कम करता है। पोश्चर में सुधार नसों को आराम देने में मदद करता है।


टाइपिंग की तकनीक

टाइप करते समय कलाई को अधिक मोड़ना टनल में दबाव बढ़ा सकता है। कीबोर्ड को कोहनी की ऊंचाई या उससे थोड़ा नीचे रखना कलाई को सीधा रखता है। टाइपिंग को सॉफ्ट-टच रखना, उंगलियों की गति को बढ़ाना और कलाई की गति को कम करना नसों की सेहत के लिए फायदेमंद है। सही तकनीक से थकान और दबाव दोनों में कमी आती है।


ब्रेक लेना है जरूरी

हर 60 मिनट में 3-5 मिनट का ब्रेक लेना नसों पर पड़ने वाले लगातार दबाव को कम करता है। इस दौरान कलाई को घुमाना, उंगलियों को खोलना और हल्का स्ट्रेच देना नर्व डिकंप्रेशन में मदद करता है। ब्रेक लेना आलस्य नहीं, बल्कि नसों की मरम्मत का समय है। यह छोटा कदम लंबे समय तक दर्द से बचा सकता है।


पेन-ग्रिप का महत्व

डिजिटल वर्क में लिखने का कार्य भी शामिल होता है। पतले पेन पर अधिक दबाव डालने से पकड़ कमजोर हो सकती है। ओवरसाइज और बेहतर ग्रिप वाले पेन उंगलियों और कलाई की मांसपेशियों पर दबाव को कम करते हैं। लिखते समय पेन को हल्के हाथ से पकड़ना और बीच-बीच में हाथ को ढीला छोड़ना आवश्यक है।