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किसान रमेश ने जैविक खेती में वर्मी कम्पोस्ट से बदली तस्वीर

किसान रमेश पंवार ने वर्मी कम्पोस्ट के माध्यम से जैविक खेती में एक नई दिशा दिखाई है। राजस्थान के पाली जिले में स्थित उनके खेतों में उगने वाले फल और सब्जियां न केवल रासायनिक तत्वों से मुक्त हैं, बल्कि स्वाद और पोषण में भी बेहतरीन हैं। रमेश ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। जानें वर्मी कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया और इसके फायदों के बारे में।
 

वर्मी कम्पोस्ट: जैविक खेती की नई दिशा

कृषि समाचार: वर्मी कम्पोस्ट से कमाई का नया मॉडल: किसान रमेश ने जैविक खेती की तस्वीर बदली: वर्मी कम्पोस्ट आज जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। राजस्थान के पाली जिले के एक छोटे से गांव के किसान रमेश पंवार ने इसे गंभीरता से अपनाया और देखते ही देखते वह जैविक खेती में सफलता की एक मिसाल बन गए।


शुरुआत में लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, लेकिन रमेश के जुनून और निरंतर प्रयासों ने उन्हें 'काला सोना' के उत्पादक बना दिया। आज उनके खेतों में उगने वाले फल और सब्जियां न केवल रासायनिक तत्वों से मुक्त हैं, बल्कि स्वाद और पोषण में भी बेहतरीन हैं।


वर्मी कम्पोस्ट कैसे बनता है?


वर्मी कम्पोस्ट जैविक अपशिष्ट और गोबर से निर्मित खाद है, जो केंचुओं द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें केंचुए गोबर, सूखे पत्ते और अन्य जैविक सामग्री को खाकर उपजाऊ खाद बनाते हैं। इसे बनाने की प्रक्रिया सरल है—जमीन पर प्लास्टिक बिछाकर बेड तैयार किया जाता है, जिसमें गोबर और सूखे पत्ते फैलाए जाते हैं।


इसके बाद इसमें केंचुए डाले जाते हैं और ऊपर से सूखी घास या पुआल से ढक दिया जाता है। हर दिन पानी का छिड़काव किया जाता है और 45 से 60 दिन में यह वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाता है। इसकी कीमत लगभग 10 से 12 रुपये प्रति किलो है और इसकी मांग मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु के साथ-साथ दुबई और सिंगापुर तक है (compost demand).


जैविक खेती का भविष्य और वर्मी कम्पोस्ट की भूमिका


रासायनिक खादों का लंबे समय तक उपयोग खेतों की उपजाऊ ताकत को समाप्त कर देता है। लेकिन वर्मी कम्पोस्ट (worm compost) से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसलें ज़हरमुक्त, पोष्टिक और स्वादिष्ट होती हैं। रमेश ने न केवल अपने खेतों में इसका उपयोग किया, बल्कि आस-पास के किसानों को भी प्रशिक्षण दिया।


आज उनके द्वारा बनाए गए खाद की गुणवत्ता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। शहरी लोग भी अब अपनी छतों पर जैविक सब्जियां उगा रहे हैं और जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है (organic compost, vermiculture farming).