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कुम्हारों की दीपावली तैयारियों में मिट्टी की कमी का संकट

इस वर्ष बारिश ने कुम्हारों की दीपावली तैयारियों को प्रभावित किया है, क्योंकि मिट्टी की आपूर्ति में भारी कमी आई है। तालाबों में भरे पानी के कारण कुम्हारों को मिट्टी नहीं मिल रही है, जिससे उनकी दीयों की तैयारी अधूरी रह गई है। कीमतों में वृद्धि के साथ, कुम्हारों की चिंता बढ़ रही है कि महंगाई उनके परिवारों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी। जानें इस संकट के पीछे की कहानी और कुम्हारों की स्थिति।
 

बारिश ने मिट्टी की खुशबू को छीन लिया

मोहाली। जब बारिश की बूंदें मिट्टी पर गिरती हैं, तो एक अद्भुत खुशबू फैलती है। लेकिन इस बार बारिश ने इतनी अधिक मात्रा में पानी बरसाया कि मिट्टी और उसकी महक दोनों ही गायब हो गई हैं। इसका प्रभाव किसानों पर तो पड़ा ही है, लेकिन सबसे ज्यादा कठिनाई उन कुम्हारों को हुई है, जो मिट्टी से दीए बनाकर खुशियों का निर्माण करते हैं। इस बार दीपावली की तैयारियों में बाधा आई है, क्योंकि तालाबों और खेतों में भरा पानी सूख नहीं रहा है, जिससे कुम्हारों तक मिट्टी नहीं पहुंच पा रही है।


कुम्हारों का चाक रुका

लोया की कुम्हार कॉलोनी में रहने वाले अमित कुमार की कहानी सुनकर दिल को छू जाती है। वे बताते हैं कि पिछले 25 दिनों से उन्हें मिट्टी नहीं मिली है। हर सुबह वे उम्मीद के साथ उठते हैं कि आज मिट्टी आएगी, चाक चलेगा, और दीए बनेंगे। लेकिन निराशा ही हाथ लगती है। इस बार दीपावली अक्टूबर में है, इसलिए तैयारियों में देरी हो गई है। मिट्टी की कमी ने कुम्हारों के हाथों को थाम लिया है, और उनकी अंगुलियां अब तराशने के बजाय इंतजार में हैं।


मिट्टी की आपूर्ति का संकट

चंडीगढ़ और उसके आसपास के कुम्हारों को मिट्टी की आपूर्ति गांव माजरी के आसपास से होती थी। लेकिन इस बार बारिश ने तालाबों को भर दिया है। पंजाब में स्थिति और भी गंभीर है। इस वर्ष केवल 25 प्रतिशत मिट्टी ही उपलब्ध हो पाई है। नवरात्र, करवाचौथ, अहोई अष्टमी और दीपावली जैसे त्योहार नजदीक हैं, जिनके लिए पहले से तैयारियां आवश्यक होती हैं। लेकिन मिट्टी की कमी ने सभी तैयारियों को ठप कर दिया है। पहले जो मिट्टी आसानी से मिल जाती थी, अब उसकी कीमत 500 से 1000 रुपये तक बढ़ गई है। कुम्हारों ने सरकार से अनुरोध किया है कि मिट्टी की आपूर्ति जल्द बहाल की जाए।


मजबूरी में बढ़ती कीमतें

मिट्टी की कमी ने कुम्हारों को मजबूरन कीमतें बढ़ाने पर विवश कर दिया है। पहले जहां एक दीया 2 रुपये में मिलता था, अब उसकी कीमत 4 से 5 रुपये हो गई है। अमित जैसे कुम्हारों को चिंता है कि महंगाई का असर उनके परिवारों पर न पड़े। यह छोटा सा व्यवसाय ही उनकी आजीविका का सहारा है। बचे-खुचे मिट्टी से काम चल रहा है, लेकिन इससे त्योहारों की मांग पूरी नहीं हो पाएगी।