कुरुक्षेत्र में गीता उपहार देने की बढ़ती परंपरा
धर्मनगरी में उपहारों का नया अर्थ
कुरुक्षेत्र (Bhagavad Gita Gift)। धर्मनगरी में उपहार देने की परंपरा में बदलाव आ रहा है। पहले लोग मिठाई, शोपीस या फूलों के गुलदस्ते भेंट करते थे, लेकिन अब श्रीमद्भगवद्गीता को अपने प्रियजनों को उपहार में देने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। व्यक्तिगत समारोहों से लेकर संस्थागत आयोजनों तक, गीता भेंट करने की परंपरा में वृद्धि हो रही है। लोग मानते हैं कि गीता केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि जीवन के लिए मार्गदर्शक है।
गीता की बिक्री में वृद्धि
गीता के प्रति बढ़ती श्रद्धा का प्रमाण यह है कि प्रतिदिन 300 से अधिक प्रतियां बिक रही हैं। ब्रह्मसरोवर तट पर स्थित लगभग 15 धार्मिक पुस्तक भंडारों में गीता की बिक्री सबसे अधिक हो रही है। दुकानदारों का कहना है कि अब सम्मान समारोहों और धार्मिक आयोजनों में गीता भेंट करने की परंपरा बन गई है। पहले यह परंपरा नहीं थी, लेकिन अब लोग इसे श्रद्धा और आधुनिकता के साथ भेंट करते हैं।
संस्थाएं भी गीता भेंट कर रही हैं
संस्थागत स्तर पर भी गीता को उपहार के रूप में देने की परंपरा बढ़ी है। कई शिक्षण संस्थान, सामाजिक और धार्मिक संगठन अपने कार्यक्रमों में मुख्य अतिथियों को गीता की प्रति भेंट कर रहे हैं। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड भी अपने अतिथियों को गीता की प्रति और 48 कोस तीर्थ यात्रा पुस्तक स्मृति चिह्न के रूप में दे रहा है। इसके अलावा, कई संस्थान अपने नाम और लोगो के साथ विशेष कवर पेज वाली गीता भी छपवा रहे हैं और अतिथियों को भेंट कर रहे हैं।
पॉकेट साइज गीता की बढ़ती मांग
ब्रह्मसरोवर स्थित श्री राधे धार्मिक पुस्तक भंडार के संचालक पुनीत बताते हैं कि पिछले डेढ़ से दो साल में गीता को उपहार में देने का चलन काफी बढ़ा है। सबसे अधिक मांग पॉकेट साइज गीता की है, जिसे आसानी से साथ रखा जा सकता है। उनके पास गीता के 9 भाषाई संस्करण उपलब्ध हैं, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, मराठी, कन्नड़, पंजाबी और संस्कृत शामिल हैं। हिंदी और अंग्रेजी रूपांतरण की बिक्री सबसे अधिक होती है। पुनीत के अनुसार, रोजाना 25 से 30 प्रतियां बिकती हैं। खरीदार गीता को उपहार में देते हैं या खुद अध्ययन के लिए खरीदते हैं।