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ग्रामीण भारत में महिलाओं के लिए प्रदूषित ईंधन का खतरा: अध्ययन

एक नए अध्ययन ने यह बताया है कि ग्रामीण भारत में महिलाएं प्रदूषित खाना पकाने के ईंधन के उपयोग से संज्ञानात्मक गिरावट के अधिक जोखिम में हैं। भारतीय विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए इस शोध में यह स्पष्ट हुआ है कि पारंपरिक ईंधन का उपयोग करने वाली महिलाएं स्मृति और ध्यान में गिरावट का सामना कर रही हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्वच्छ ईंधन का उपयोग करने वाली महिलाओं की तुलना में प्रदूषित ईंधन का उपयोग करने वाली महिलाओं ने संज्ञानात्मक परीक्षणों में खराब प्रदर्शन किया।
 

महिलाओं पर प्रदूषित खाना पकाने के ईंधन का प्रभाव

एक हालिया अध्ययन ने यह दर्शाया है कि ग्रामीण भारत में महिलाएं प्रदूषित खाना पकाने के ईंधन के उपयोग के कारण संज्ञानात्मक गिरावट के अधिक जोखिम में हैं। यह शोध भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) द्वारा किया गया है, जो घरेलू वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को उजागर करता है।


अध्ययन में यह पाया गया कि महिलाएं जो लकड़ी, गोबर, फसल अवशेष और मिट्टी का तेल जैसे पारंपरिक ईंधन का उपयोग करती हैं, उन्हें खराब इनडोर वायु गुणवत्ता के कारण स्मृति, ध्यान और समस्या-समाधान जैसे संज्ञानात्मक कार्यों में अधिक गिरावट का सामना करना पड़ता है।


शोधकर्ताओं ने बताया कि महिलाएं अक्सर खाना पकाने में अधिक समय बिताती हैं, जिससे वे वायु प्रदूषण और विशेष रूप से सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5) के उच्च स्तर के संपर्क में आती हैं। यह लंबे समय तक संपर्क उनके मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।


अध्ययन ने विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया और यह स्पष्ट किया कि जो महिलाएं स्वच्छ ईंधन (जैसे एलपीजी) का उपयोग करती थीं, उनकी तुलना में प्रदूषित ईंधन का उपयोग करने वाली महिलाओं ने संज्ञानात्मक परीक्षणों में काफी खराब प्रदर्शन किया। इन परीक्षणों में स्मृति, स्थानिक जागरूकता और सूचना प्रसंस्करण की गति शामिल थी।