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ग्रेटर नोएडा में घर खरीदारों की समस्याएं: सीएजी रिपोर्ट का खुलासा

ग्रेटर नोएडा में हजारों घर खरीदार आज भी अपने सपनों के घर के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सीएजी की रिपोर्ट में प्राधिकरण की लापरवाहियों और बिल्डरों के प्रति सहानुभूति का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, कई परियोजनाएं अधूरी हैं और बिल्डरों पर भारी बकाया है। जानें इस संकट के पीछे की सच्चाई और कैसे यह खरीदारों को प्रभावित कर रहा है।
 

ग्रेटर नोएडा में घर खरीदारों की निराशा

Greater Noida News: ग्रेटर नोएडा में हजारों घर खरीदार आज भी अपने सपनों के घर के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह समस्या किसी प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं है, बल्कि यह सिस्टम की एक गंभीर खामी का नतीजा है, जिसमें ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की बिल्डरों के प्रति सहानुभूति स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। इसने न केवल योजनाओं को अधर में लटका दिया है, बल्कि खरीदारों का विश्वास भी तोड़ दिया है। यह तथ्य सीएजी की रिपोर्ट में उजागर हुआ है।


सीएजी की रिपोर्ट ने खोली सच्चाई
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की ऑडिट रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने 2005-06 से 2014-15 के बीच 94 बिल्डर और ग्रुप हाउसिंग भूखंड आवंटित किए, जो बाद में बढ़कर 186 हो गए। इनमें से केवल 27 परियोजनाएं अप्रैल 2021 तक पूरी हो पाईं, जबकि बाकी अधूरी या लटकी हुई हैं।


प्राधिकरण के निर्णयों ने किया नुकसान
सीएजी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अधिकारियों ने मनमाने तरीके से भूखंड आरक्षण और आवंटन की शर्तों में बदलाव किए। 2008-09 की योजना में आरक्षण राशि को 30 फीसदी से घटाकर 20 और फिर 10 फीसदी कर दिया गया, यह सब बिना बोर्ड की मंजूरी के। इससे बिल्डरों को कम राशि में अधिक भूमि मिल गई, जबकि प्राधिकरण को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ।


रिपोर्ट में बकाया राशि का विवरण
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2021 तक बिल्डरों पर कुल बकाया 10,732.44 करोड़ रुपये है। 121 परियोजनाएं तय समय सीमा के बाद भी अधूरी हैं, और 35 बिल्डरों ने 294.02 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है।


लापरवाही का आलम
प्राधिकरण की लापरवाही यहीं खत्म नहीं होती। 11 मामलों में कंसोर्टियम के सदस्यों ने नियमों के अनुसार विशेष प्रयोजन कंपनी का गठन नहीं किया। नियमों के खिलाफ जाकर प्रमुख सदस्यों को प्रोजेक्ट छोड़ने की अनुमति दी गई, जिससे अपात्र कंपनियों को प्रवेश मिला और परियोजनाएं दिशाहीन हो गईं। चार मामलों में कंपनियों ने पात्रता के सभी दस्तावेज नहीं दिए, फिर भी 272.70 करोड़ रुपये की भूमि आवंटन की सिफारिश की गई।