×

चंडीगढ़ में मरीजों की सुरक्षा के लिए नए प्रिस्क्रिप्शन नियम लागू

चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच-32) ने मरीजों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नए प्रिस्क्रिप्शन नियम लागू किए हैं। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल मेडिकल कमीशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, डॉक्टरों को दवाइयां कैपिटल लेटर्स में लिखने या टाइप करके प्रिंट करने का आदेश दिया गया है। इससे गलत दवाइयों के खतरे को कम किया जाएगा और मरीजों को स्पष्ट जानकारी मिलेगी। यह कदम उपचार की गुणवत्ता को बढ़ाने और मरीजों के विश्वास को मजबूत करने के लिए उठाया गया है।
 

चंडीगढ़, जीएमसीएच-32 प्रिस्क्रिप्शन नियम

चंडीगढ़, जीएमसीएच-32 प्रिस्क्रिप्शन नियम: चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच-32) में अब मरीजों को गलत दवाइयों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी! सुप्रीम कोर्ट और नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के निर्देशों को लागू करते हुए, अस्पताल के निदेशक प्रिंसिपल प्रो. जीपी थामी ने सभी चिकित्सकों को स्पष्ट आदेश दिए हैं। अब डॉक्टरों को दवाइयां कैपिटल लेटर्स में लिखनी होंगी या टाइप करके प्रिंटआउट देना होगा। यह कदम मरीजों की सुरक्षा और उपचार में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।


गलत दवाइयों का खतरा समाप्त होगा

डॉक्टरों की अस्पष्ट लिखावट के कारण मेडिकल स्टोर पर दवाइयों को गलत पढ़ने की घटनाएं होती थीं, जिससे मरीजों को गलत दवा मिलती थी। इससे उनकी सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता था। नए नियम के तहत, मरीजों को स्पष्ट और समझने योग्य प्रिस्क्रिप्शन मिलेगा, जिससे उपचार में गलतियों की संभावना कम होगी। अस्पताल प्रशासन का मानना है कि इससे उपचार की गुणवत्ता में सुधार होगा और मरीजों का विश्वास बढ़ेगा।


सभी विभागों में नियम लागू

जीएमसीएच-32 ने सभी विभागाध्यक्षों को निर्देशित किया है कि वे अपने डॉक्टरों से इस नियम का सख्ती से पालन करवाएं। किसी भी प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह आदेश तुरंत प्रभाव से लागू हो चुका है। अस्पताल का उद्देश्य है कि मरीजों को सुरक्षित और सटीक उपचार मिले।


चंडीगढ़ के मरीजों का मौलिक अधिकार

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि स्पष्ट और पढ़ने योग्य प्रिस्क्रिप्शन मरीज का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) से जोड़ा है। कोर्ट का कहना है कि जब तक मरीज को स्पष्ट उपचार की जानकारी नहीं मिलेगी, उनका जीवन का अधिकार अधूरा रहेगा। अब डिजिटल युग में खराब लिखावट को स्वीकार नहीं किया जाएगा।