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चने की फसल की देखभाल के लिए आवश्यक टिप्स

चने की फसल की देखभाल के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स जानें, जो किसानों को अधिक उपज प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। इस लेख में जल निकासी, गुड़ाई-निराई, बीमारियों से बचाव, उर्वरक प्रबंधन और हल्की सिंचाई के महत्व पर चर्चा की गई है। सही देखभाल से किसान अपनी फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार कर सकते हैं।
 

चने की फसल की देखभाल का महत्व

चने की फसल भारत में रबी सीजन में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। यह न केवल किसानों की आय में वृद्धि करती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है। हालांकि, अच्छी उपज के लिए केवल बुआई करना ही पर्याप्त नहीं है; इसके बाद की देखभाल भी अत्यंत आवश्यक है। यदि किसान कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें, तो वे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।


जल निकासी का ध्यान रखना

चना बोने के बाद, खेत में नमी का स्तर संतुलित रखना आवश्यक है। चना अधिक पानी सहन नहीं कर सकता, इसलिए बुआई के बाद खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए। हल्की वर्षा वाले क्षेत्रों में एक बार हल्की सिंचाई पर्याप्त होती है, जबकि अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में जल निकासी का ध्यान रखना आवश्यक है। मिट्टी में अधिक नमी रहने पर पौधों की जड़ें गलने का खतरा बढ़ जाता है।


गुड़ाई-निराई का समय

बुआई के कुछ दिनों बाद अंकुरण शुरू होता है, और इस दौरान खरपतवार एक बड़ी समस्या बन जाती है। खरपतवार न केवल फसल की वृद्धि को रोकते हैं, बल्कि पौधों से पोषक तत्व और नमी भी छीन लेते हैं। इसलिए, बुआई के 25 से 30 दिन के भीतर पहली गुड़ाई-निराई करना आवश्यक है। यदि खरपतवार नियंत्रण सही समय पर किया जाए, तो फसल की वृद्धि तेज होती है।


बीमारियों से बचाव

चने की फसल को बीमारियों और कीटों से बचाना भी आवश्यक है। उखठा रोग, फ्यूजेरियम विल्ट और चने की फली छेदक कीट किसानों के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। इनसे बचाव के लिए खेत की नियमित निगरानी करनी चाहिए। पौधों में बीमारी के लक्षण दिखते ही तुरंत उपाय करना चाहिए। रोग नियंत्रण के लिए बीज उपचार और जैविक उत्पादों का उपयोग करना बेहतर होता है।


उर्वरक प्रबंधन

उर्वरक प्रबंधन भी फसल की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बुआई के बाद प्रारंभिक अवस्था में चना अधिक खाद नहीं मांगता, लेकिन फूल आने और फलियां बनने के समय पौधों को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है। इस दौरान डीएपी, जिंक और सल्फर जैसे पोषक तत्व देने से फली की संख्या और गुणवत्ता में सुधार होता है।


फसल की निगरानी

बोने के बाद फसल की नियमित निगरानी करना भी किसान की जिम्मेदारी होती है। यह देखना जरूरी है कि पौधों की वृद्धि समान रूप से हो रही है या नहीं। यदि कहीं पौधे सूखने लगें या वृद्धि रुक जाए, तो उसका कारण समझकर समाधान करना चाहिए।


हल्की सिंचाई का महत्व

फसल को समय पर सिंचाई और सही देखभाल मिलने पर उसका उत्पादन दोगुना हो सकता है। खासकर फूल और फलियों की अवस्था में पानी की कमी होने पर पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। इसलिए इस समय हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। कटाई से लगभग 15 दिन पहले सिंचाई रोक देना चाहिए, ताकि दाने अच्छे से पक सकें।