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जर्मनी के चिड़ियाघर में गिनी बबूनों की हत्या पर बवाल

जर्मनी के न्यूरेंबर्ग चिड़ियाघर में 12 स्वस्थ गिनी बबूनों की हत्या ने स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा कर दिया है। चिड़ियाघर प्रबंधन इसे एक आवश्यक कदम बताता है, जबकि पशु अधिकार संगठन इसे अमानवीय और अवैध करार दे रहे हैं। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और पशु प्रेमियों की प्रतिक्रिया।
 

चिड़ियाघर में बबूनों की हत्या का मामला

जर्मनी के न्यूरेंबर्ग स्थित एक प्रसिद्ध चिड़ियाघर में 12 स्वस्थ गिनी बबूनों को मारने और उन्हें शिकारियों को खिलाने का मामला सामने आया है। इस निर्णय ने न केवल स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पशु अधिकार संगठनों में भी आक्रोश पैदा कर दिया है। चिड़ियाघर प्रबंधन इसे 'अंतिम उपाय' बताता है, जबकि विरोध प्रदर्शन इसे अमानवीय और अवैध करार दे रहे हैं।


न्यूरेंबर्ग चिड़ियाघर के अनुसार, बबूनों की संख्या enclosure में 25 से अधिक हो गई थी, जबकि इसकी अधिकतम क्षमता 25 जानवरों की थी। हाल के वर्षों में यह संख्या 40 से ऊपर चली गई, जिससे आपसी संघर्ष बढ़ने लगे। चिड़ियाघर के निदेशक डैग एंके ने कहा कि बंदरों को मारने का निर्णय वर्षों की योजना और यूरोपीय एसोसिएशन ऑफ जूज एंड एक्वेरिया (EAZA) के मानकों के तहत लिया गया। उन्होंने कहा, "जब कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो, तब प्रजाति के हित में चयनात्मक हत्या एक वैध अंतिम उपाय हो सकती है।"


पशु प्रेमियों का गुस्सा

पशु प्रेमियों का गुस्सा


इस निर्णय के बाद, चिड़ियाघर को मंगलवार सुबह 'ऑपरेशनल कारणों' से अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया, लेकिन इससे प्रदर्शन और भड़क गया। कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने चिड़ियाघर की बाड़ फांदकर प्रदर्शन किया। एक महिला ने तो प्रवेश द्वार पर अपने हाथ चिपका दिए। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर सात कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि चिड़ियाघर की लापरवाह प्रजनन नीति के कारण जानवरों को मारना पड़ा, जो न केवल अमानवीय है, बल्कि गैरकानूनी भी है।


अंतरराष्ट्रीय आलोचना और नीतियों पर सवाल

अंतरराष्ट्रीय आलोचना और नीतियों पर सवाल


इस घटना ने यूरोपीय चिड़ियाघरों की जनसंख्या नियंत्रण नीतियों पर सवाल उठाए हैं। 'प्रो वाइल्डलाइफ' नामक एक प्रमुख पशु अधिकार संगठन ने इस कदम को "टाला जा सकने वाला और अवैध" बताया। संगठन के प्रवक्ता ने कहा, "स्वस्थ जानवरों की हत्या इस बात का नतीजा है कि चिड़ियाघर ने वर्षों तक गैर-जिम्मेदाराना और अस्थायी प्रजनन नीतियां अपनाईं।" इससे पहले भी यूरोपीय चिड़ियाघरों पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इस बार सार्वजनिक आक्रोश अधिक व्यापक रूप से सामने आया है।