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डायबिटीज के खतरे को बढ़ाने वाले फैटी लिवर और पीसीओएस: जानें कैसे करें प्रबंधन

आजकल युवा महिलाओं में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसमें फैटी लिवर और पीसीओएस महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये दोनों स्थितियां इंसुलिन रेजिस्टेंस को बढ़ाती हैं, जिससे टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ता है। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे इन स्थितियों का प्रबंधन किया जा सकता है, जैसे नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और स्वास्थ्य जांच। सही जीवनशैली अपनाकर आप इन समस्याओं से बच सकते हैं।
 

डायबिटीज के बढ़ते मामलों का कारण

हाल के समय में युवा महिलाओं में डायबिटीज के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसके पीछे अस्वस्थ खानपान और खराब जीवनशैली जैसे कई कारक जिम्मेदार हैं। क्या आप जानते हैं कि फैटी लिवर और पीसीओएस भी डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा सकते हैं? इन दोनों स्थितियों में इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाता है, जिससे टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ता है। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि इससे कैसे बचा जा सकता है।


पीसीओएस और फैटी लिवर का डायबिटीज पर प्रभाव

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि आपको पीसीओएस या फैटी लिवर है, तो यह टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को बढ़ा सकता है। इसका मुख्य कारण इंसुलिन रेजिस्टेंस है। इंसुलिन हार्मोन रक्त से ग्लूकोज को कोशिकाओं में पहुंचाने में मदद करता है और शरीर में ऊर्जा बनाए रखने के लिए आवश्यक है।


जब कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं देती हैं, तो शरीर रक्त शुगर के स्तर को बनाए रखने के लिए अधिक इंसुलिन का स्राव करता है। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह इंसुलिन रेजिस्टेंस का कारण बनती है। इस असंतुलन के कारण पीसीओएस और फैटी लिवर विकसित हो सकते हैं।


फैटी लिवर की स्थिति में, अधिक मीठा खाना, अस्वस्थ आहार और व्यायाम की कमी के कारण लिवर कोशिकाओं में वसा जमा होने लगती है।


इंसुलिन, वसा और रक्त शुगर के नियंत्रण में लिवर के कार्य में बाधा डालता है। इस प्रकार, पीसीओएस में उच्च इंसुलिन स्तर अंडाशय में अधिक मेल हार्मोन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इंसुलिन प्रतिरोध के साथ हार्मोनल असंतुलन डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा देता है।


फैटी लिवर शरीर में प्रो-इंफ्लेमेटरी रसायनों का उत्पादन करता है, जो इंसुलिन रेजिस्टेंस का कारण बनता है। जब फास्टिंग ब्लड शुगर बढ़ने लगता है, तो प्री-डायबिटीज या टाइप 2 के लिए रक्त शुगर को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है। फैटी लिवर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके प्रारंभिक चरण में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।


पीसीओएस एक मेटाबॉलिज्म से जुड़ी बीमारी है, जो प्रजनन प्रणाली से संबंधित होती है। यह आमतौर पर महिलाओं में मेटाबॉलिज्म असंतुलन का संकेत देती है, जिससे रक्त शुगर को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उच्च कोलेस्ट्रॉल और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।


पीसीओएस से प्रभावित महिलाओं में टाइप 2 मधुमेह होने की संभावना अन्य महिलाओं की तुलना में कई गुना अधिक होती है।


फैटी लिवर और पीसीओएस का प्रबंधन कैसे करें

रोजाना कम से कम 30-45 मिनट व्यायाम करना चाहिए, जिससे इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार हो सके।


संतुलित आहार लेना चाहिए, जिसमें प्रोटीन, फाइबर और स्वस्थ वसा शामिल हों।


रिफाइंड शुगर का सेवन कम से कम करना चाहिए।


लिवर फंक्शन, रक्त शुगर और हार्मोनल असंतुलन की जांच करवानी चाहिए।


यदि अचानक वजन बढ़ने लगे या थकान महसूस होने लगे, तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।


डायबिटीज, फैटी लिवर और पीसीओएस का प्रबंधन करने के लिए सही जीवनशैली और संतुलित आहार का होना अत्यंत आवश्यक है।