×

दक्षिण अफ्रीका में महिला माह: राष्ट्रपति ने नीतियों में लैंगिक समानता की आवश्यकता पर जोर दिया

दक्षिण अफ्रीका में महिला माह के अवसर पर राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने लैंगिक समानता को नीतियों में शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया और राष्ट्रीय संवाद प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की अपील की। रामाफोसा ने यह भी कहा कि देश के सभी मुद्दों का महिलाओं पर प्रभाव पड़ता है, और सभी वर्गों की भागीदारी आवश्यक है। इस लेख में जानें कि कैसे महिलाएं देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
 

महिला माह का महत्व

केपटाउन: दक्षिण अफ्रीका में इस समय महिला माह का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा कि देश की सभी नीतियों और निर्णयों में लैंगिक समानता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।


महिलाओं की भूमिका

राष्ट्रपति ने अपने साप्ताहिक संदेश में अपील की कि प्रिटोरिया में शुक्रवार से शुरू होने वाली ‘राष्ट्रीय संवाद प्रक्रिया’ में महिलाओं को प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि उनके योगदान से देश का भविष्य आकार लेगा।


राष्ट्रीय संवाद प्रक्रिया

यह संवाद प्रक्रिया विभिन्न व्यक्तियों और संगठनों को एकत्रित कर देश की चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयास है।


महिलाओं पर प्रभाव

रामाफोसा ने कहा, “देश के हर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दे का महिलाओं पर प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी, अपराध और जलवायु परिवर्तन जैसे संकटों का असर महिलाओं पर अधिक होता है।”


सभी वर्गों की भागीदारी

उन्होंने यह भी बताया कि ग्रामीण, शहरी और दिव्यांग महिलाओं की परिस्थितियां भिन्न हैं, इसलिए सभी वर्गों की भागीदारी आवश्यक है।


सरकार का वादा

सरकार ने इस प्रक्रिया से संबंधित सभी समितियों में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया है। रामाफोसा ने कहा कि किसी भी नीति के निर्माण में यह देखना जरूरी है कि उसका महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा।


महिला दिवस की याद

महिला दिवस के अवसर पर, उन्होंने 1956 के ऐतिहासिक महिला मार्च को याद किया, जब 20,000 से अधिक महिलाओं ने रंगभेद शासन के कठोर ‘पास कानून’ का विरोध किया था।


महिलाओं की ताकत

रामाफोसा ने कहा, “यह मार्च केवल कानूनों के खिलाफ विरोध नहीं था, बल्कि महिलाओं की शक्ति और अधिकार का एक मजबूत प्रदर्शन था। इसने यह दर्शाया कि दक्षिण अफ्रीका की महिलाएं, जिन्हें उस समय रंगभेद शासन द्वारा स्थायी रूप से नाबालिग माना गया था, वे केवल मूकदर्शक नहीं रहेंगी।”