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पितृ पक्ष में पशु-पक्षियों को भोजन कराने का महत्व

पितृ पक्ष, जो 7 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है, में गाय, कुत्ता, कौआ और चींटी को भोजन कराने की परंपरा का विशेष महत्व है। यह परंपरा पूर्वजों की आत्मा से जुड़ने और पितृ दोष से मुक्ति का माध्यम मानी जाती है। जानें कैसे ये जीव पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक हैं और उनके लिए भोजन देने का क्या महत्व है।
 

गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन देने का महत्व


पितृ पक्ष का आरंभ
7 सितंबर 2025 से पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है, जिसमें तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है। इस दौरान गाय, कुत्ता, चींटी और कौआ को भोजन कराना एक महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है, क्योंकि ये जीव पूर्वजों की आत्मा से जुड़ने और पितृ दोष से मुक्ति का साधन माने जाते हैं।


गाय को भोजन देना

हिंदू धर्म में गाय को माता और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि गाय के माध्यम से पितर तृप्त होते हैं। पितृ पक्ष में गाय को हरा चारा, रोटी और गुड़ खिलाने से पितरों को संतोष मिलता है। यह सेवा पापों के क्षय, धन-धान्य की वृद्धि और आशीर्वाद की प्राप्ति का मार्ग है।


कुत्ते को भोजन देना

कुत्ता यमराज का दूत माना जाता है और इसे काल भैरव की सवारी भी माना जाता है। मान्यता है कि कुत्ते को रोटी, दूध या मीठा भोजन देने से पितरों का मार्ग सुगम और सुरक्षित होता है। इसके अलावा, कुत्ते को भोजन कराने से अकाल मृत्यु के दोष से मुक्ति भी मिलती है।


कौए को भोजन देना

कौआ पितरों का संदेशवाहक माना जाता है। श्राद्ध का पहला भाग कौए को दिया जाता है। यदि कौआ भोजन स्वीकार कर ले, तो यह संकेत होता है कि पितरों ने तर्पण स्वीकार कर लिया है और वे प्रसन्न हैं।


चींटी को भोजन देना

पितृ पक्ष में चींटियों को आटे और शक्कर से बनी गोलियां डालना शुभ माना जाता है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। मान्यता है कि यदि आपके पितर अधोलोक में हैं, तो चींटियाँ उन तक खाना पहुँचाती हैं। आटे की गोलियां या आटे की लोई में घी और गुड़ डालकर जलचर जीवों को खिलाना भी पितृ तर्पण का हिस्सा माना जाता है। यह जल तत्व और पितरों के संतोष का प्रतीक है。